हिमाचल प्रदेश     कुल्लू     बोहरनाला


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगे क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें सामान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे हुए हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

बोहरनाला समूह के बारे में:-

बोहरनाला समूह हिमाचल प्रदेश राज्‍य में कुल्लू   जिला के अर्न्‍तगत आता है.

बोहरनाला समूह 300 से अधिक कलाकारों तथा 15 एसएचजी आकार सहित सशक्‍त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्‍त कर रहा है.

बेंत और बास:-

कलाकार अथवा टोकरी बुनकर जो संपूर्ण प्रदेश में रहते हैं टोकरी निर्माण शिल्‍प कार्य या टोकरी बुनाई करते हैं. अनेक उपयोगी वस्‍तुएं जैसे किल्‍टु – अन्‍न संग्रह के लिए बड़ी शंक्‍वाकार टोकरी, गावतकिए जैसा गद्दी और पंखियां इन कलाकारों द्वारा बनाई जाती हैं. इन कलाकारों को अलग-अलग जिलों में विभिन्‍न नामों से जाना जाता है. इन्‍हें डुमना, डोमरा, बराड़ा, रेहाड़ा, बंजारा, कोली या चमांग के रूप में जाना जाता है. वस्‍तुएं निर्मित करने के लिए बुनाई और परस्‍पर गूंथने की विभिन्‍न तकनीके प्रयोग की जाती हैं. यद्यपि महिला बुनकर संपूर्ण वर्ष घरेलू उपयोग की वस्‍तुएं बनाती हैं, पुरूष प्राथमिकत शीतकाल में बुनाई करते हैं.

हिमाचल प्रदेश के जनजीवन में बेंत और बांस दो प्रमुख सामग्री है जो आम रुप से इस्तेमाल होती है।घरेलू साधनो से लेकर रहेने के मकानो के बांधकाम में ,बुनाइ के उपसाधनो तक,संगीत के साधनो तक के उत्पादने बांस से बनती है।उद्योग में कोइ भी यांत्रिक साधन का इस्तेमाल नहि होता है,जो खास तौर से घरैलू उद्योग है।बास्केट बुनाइ के अलावा बांस खास तौर से मकानो और बाडा को बनाने के लिए इस्तमाल होता है।यह उद्योग किसानो को काम न हो एसी ऋतु में पार्ट टाइम रोजगारी देता है,लेकिन अभी कारीगर बढती हुइ मात्रा में पूर्ण समयी व्यापारीक प्रवृति मे जुटे हुए दिखाइ देते है।

बांस की उत्पादने प्रमाण के रुपमे हिमाचल प्रदेश मे हर जगह पाई जाती है।बांस की बास्कीटे के अनगिनत प्रकार और आकार होते है,उसके इस्तएमाल के अनुसार अलग अलग की उसका क्या करना है।आम तौर से घर के आदमी बांस की बास्कीटे बुनती है।हरेक जिले के पास उसकी खुद की एक अलग शैली होती है।सामान्य तरीके से बेलनाकार बास्कीटे लाने-जाने के लिए इस्तेमाल होती है और चौकोर या गोल बेठकवाले संग्रह करने के लिए इस्तेमाल होते है।नमूने के तौर पे है अल्हाबाद का उतरप्रदेश बांस बास्केट।इसमे चौकोरा बेठक होती है और जो अंदर की ओर होती है जिसके कारण चौकोर के कोने आधार के रुप में काम करते है और इसका मुंह बडा होता है।इसका सुपारी रखने के लिए इस्तेमाल होता है।बोडो बांस की बास्केट मोडने की मदद से बनाइ जाती है,जिसका इस्तेमाल गला और मुंह का आकार बनाने के लिए होता है।गले से ले के नीचे तक बदामी कागज का शंकु बनाया जाता है और बास्केट मे रखा जाता है जिससे उसकी टोच नीचे तक पहुंचे।अंदर की और रेत डाली जाती है जिससे शंकु का आकार बना रहे और बुनाइ मे शंकु  आकार मे हि की जाती है।

गुडिया और खिलोने भी बेंत और बांस से बनाये जाते है। इन्सान और जानवरो की आकृतिओ के अलावा शूटगन खिलोना और संगीत के साधन बनाये जाते है।बंस से बना छाता का हाथा विशेषता होता है और इसमे पतो,विसर्पी पौधे,पौधे,रींग और क्रोस की डिजाइन उसपे रेखीत होती है।बांस की खास विशेषता जो मूली से जाना जाती है उसका हाथे के लिए इस्तेमाल होता है।

कच्ची सामग्री:-

हिमाचल प्रदेश कच्ची सामग्री मे अमीर होने की वजह से उसके पास सुंदर उत्पादने है।पर्वतीय और मेदानी लोगो की हरेक की अपनी शैली होती है।बास्केट बनाने के अलावा बेंत और बांस का फर्नीचर भी बनता है,बराबरी मे देखे तो ज्यादा आधुनिक शुरुआत।बेंत और बांस से बनी चीजे इन्सान के सर्जन मे से सबसे पुरानी है,किया जाता है तिनके को तिनके के साथ जोडके और पतो को एकदूसरे के साथ जोडना कम से कम साधनो का इस्तेमाल करके ।धार्मिक हेतुओ के लिए इसको शुध्ध माना जाता है।उतरप्रदेश में उद्योग कौशल्य के सबसे बहेतरीन नमूने मे से एक है उसका बेंत काम।कच्ची सामग्री बहुत सारी मात्रा में उसके हरे-भरे जंगलो मे पाइ जाती है,उद्योग को ताकत और आहार प्रदान करती है।

प्रक्रिया:-

बेंत और बांस का पूरा तना हेक्सो से काटा जाता है और बीलहूक से अलग अलग मापों में सीधा काटा जाता है।बांस को धीमी आग में तपाता जाता है,आम तौर से केरोसीन के दीये से फ्लेक्सीबीलीटी की बजह से।चीजो को दो अलग अलग रुपो मे बनाई जाती है: बास्केट के लिए कोइल की आकारमे,और चटाइ बुनने के लिए।कोइल बास्केट बनाने में  मध्य हिस्से के आसपास बेंत को कोइल करने के द्रारा बास्केट का बुनियाद पहले बानाया जाता है।इसको स्प्रिंग आकारमें बनाया जाता है और धीरे धीरे चोडाइ बढती है जब तक इच्छीत उंचाइ पा न ले।कोइल को एकदूसरे के साथ सिलाइ की पट्टीओ से जोडा जाता है जिनको दो प्रकार से लगाया जा सकता है:बुनियादी कोइल के नये हिस्से के उपर हरेक टांको को पसार किया जाता है।आठ की आकृति बनाइ जाती है मतलब की टांका पहले की कोइल के पीछे उचाइ की और,उपर और नीचे  और नै कोइल कि दाइ तरफ जाता है।इस तरह पट्टीओ से कोइल सामग्री कि सिलाइ की जाती है और बास्केट बनाइ जाती है।बास्केट की सजावट दोरी,कागज और कोषो को पा के की जाती है।

काटने के साधन जिसे डाउ कहा जाता है उसकी मदद से कारीगर बांस को इच्छीत माप की लंबाइमें काटता है।अलग अलग प्रकार के चाकूओ की मदद से बांस की लंबाइ मोटाइ के अनुसार काटी जाती है।इस तरह से तैयार सामग्री को चीज या फर्नीचर की फ्रेम को बनाने के लिए इस्तेमाल होता है जब की पेन्सिल बेंत का डिजाइन बनाने और बांधने के हेतु इस्तेमाल होता है। बेंत को इच्छीत रुप मे फर्नीचर या चीज बनाने के लिए ब्लो लेम्प से गर्म करने की प्रक्रिया के द्रारा मोडा जाता है।दोनो तरफ के अंत को चिपकानेवाले पदार्थ और कील से जोडा जाता है और जोडॊ को पेन्सिल बेंत की पट्टीओ से बांधा जाता है।बेंत और बांस में पैदा हुइ चीजो को  सेन्ड पेपर से साफ की जाती है और वार्निश से पोलिश की जाती है।

बेंत और बांस की चीजे बनाने मे सामील है हेक्सो से पूरे तने को काटना और बिलहूक का इस्तेमाल करके अलग अलग मापो मे उनके चीरना।चीराइ गाढी जमा हुइ फाइबर की लंबाइ के साथ सीधी ही की जाती है,और आम तौर से सरल प्रक्रिया नहि है,और अंदर के मावे मे सिर्फ जरुरी मात्रा में नमी होनी चाहिए।बेंत को गर्म करने के लिए केरोसीन लेम्प का इस्तेमाल होता है उसको आकार मे मोडा जाए उससे पहले।

तकनीकीयाँ:-

बेंत की उत्पादने बनाने में कंइ चरण पसार करने होते है,शुरू होता है जंगलो से कच्ची सामग्री को इकठठा करना।समतल सतह पाने के लिए कच्ची बेंत के उपली हिस्से को खुरचा जाता है।लबे बेंत की लकडीयो को छोटे टुकडो में काटी जाती है उसके बाद पतली पट्टीया पाने के लिए होता है बेंत को चीरना ।बेंत को आगे भी चीरा जा सकता है ,उसको जितना जरूरी हो उतना पतला बनान्रे के लिए।चीरे हुए बेंत को अब ब्लो लेम्प का इस्तेमाल करके मोडा जाता है जो सतह को थोडा जला सकता है;उसको सेन्डपेपर के द्रारा घीस के दूर किया जाता है।उसके बाद,चीज की डीजाइन जो उसमे से बन सकती है उसके आधार पर बेंत को बुना जाता है।खतम होने के बाद आखरी ट्च दीया जाता है,उत्पादन को वार्निस के स्तर से ढंका जाता है उसको बाजार में भेजने से पहले।

कैसे पहुंचे:-

निकटतम पारंपरिक रेलवेस्‍टेशन ब्राडगेज लाइन पर कालका, चंडीगढ़  तथा पठानकोट हैं जहां से कुल्‍लू सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जाता है. कुल्‍लू दिल्‍ली एवं शिमला से इंडियन एयरलाइंस, ट्रांस भारत एविएशन, जैगसन फ्लाइटस से जुड़ा हुआ है. विमानपत्तन भुंतर में कुल्‍लू से 10 कि.मी. दूरी पर है. कुल्‍लू सड़क मार्ग द्वारा दिल्‍ली, अम्‍बाला, चंडीगढ़, शिमला, देहरादून, पठानकोट, धर्मशाला एवं डलहौजी आदि से भली-भांति जुड़ा हुआ है. पर्यटन सीजन के दौरान इन स्‍टेशनों के मध्‍य डीलक्‍स, सेमी-डीलक्‍स एवं वातानुकूलित बसों सहित नियमित बसें चलती हैं.








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