इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं| बस्तर कल्स्टर के बारे में:- बस्तर कलस्टर छत्तीसगढ़ राज्य में बस्तर जिला के अर्न्तगत आता है| बस्तर कल्स्टर 500 से अधिक कलाकारों तथा 25 एसएचजी आकार सहित सशक्त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्त कर रहा है| काष्ठ शिल्प:- पौधे एवं वृक्ष हम मनुष्यों के प्रथम मित्र हैं. हम अपनी प्रत्येक आवश्यकता के लिए वृक्षों पर निर्भर करते हैं. इसी संकल्पना ने काष्ठ शिल्प के उद्भवन में सहायता की. विभिन्न उपयोगी एवं सजावटी हस्तशिल्प वस्तुएं निर्मित करने के लिए लकड़ी पर शिल्प कार्य किया जाता रहा है. प्राचीन समय में नियमित प्रयोग की वस्तुएं- हथियार, बर्तन, कुल्हाडि़यां तथा बच्चों के खिलौने एवं गुडि़या भी लकड़ी से बनाई जाती थी. मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाईयों से आरंभिक भारतीय काष्ठ शिल्प के प्रमाण प्राप्त हुए हैं. साधारण रूपों, मौलिक आकृतियों तथा कच्चे उपयोगी बर्तनों से आरंभ कर भारतीय काष्ठशिल्प ने अपने पंखों का विकास एवं विस्तार महाद्वीप की अतिसुंदर कलात्मक हस्तशिल्पों में से एक होने तक किया है| कच्ची सामग्री:- जड़ाऊ वस्तुओं का कलात्मक मूल्यांकन अत्यधिक उच्च किया जाता है. उनका प्रत्यक्षत: कड़ा मूल्य उत्पादन की लागत की अपेक्षा निर्माता की दक्षता एवं कलात्मकता के कारण होता है. इन सुंदर वस्तुओं के निर्माण में प्रयुक्त कच्ची सामग्री में प्राथमिक रूप से शीशम, विभिन्न रंगों की लकडि़यां, कृत्रिम हाथी दॉंत, प्लास्टिक, काष्ठकार गोंद (वज्र), पॉलिश, मधुछत्ते का मोम, ब्लैक आईवरी, तारपीन, रेगमार, तथा हार्डवेयर जैसे पेंच, पिनें, कीलें, चूलें एवं छल्ले होते हैं| उपकरण:- बढ़ईयों द्वारा काम में लाए जाने वाले उपकरण जैसे छैनी, आरी, रंदा, हथौड़ा, आरी फट्टा, बंधनी एवं बिट, रेती, छीलने की आरी, चिमटी, , पेचकस,रेगमार गट्टु, प्रकार, मरोड़ने की ड्रिल, सान भी इन शिल्पियों के लिए इतने ही आवश्यक हैं. यह औजार बढ़ईयों तथा जड़ाई श्रमिकों के लिए समान होने के कारण विस्तार से नही बताया जा रहा है. इसलिए कुछ उपकरणों को वर्णित किया जा रहा है जो विशेषकर जड़ाऊ वस्तुएं निर्मित करने में आवश्यक होते हैं| प्रक्रिया:- शीशम की लकड़ी पर विभिन्न रंगों की लकड़ी की जड़ाई की उत्पादन तकनीक निम्नलिखित आठ चरणें में व्यक्त की जा सकती है: 1. पटरे बनाना. 2. सॉंचे काटना. 3. जड़ाई के लिए विभिन्न रंगों की लकड़ी काटना. 4. जड़ाई करना. 5. लाप्पा लगाना.6. जड़ाई सतह को कोमल करना. 7. उत्कीर्ण करना एवं छपाई. 8. चमक प्रदान करना. कार्य का प्रथम चरण अर्थात पटरे बनाना बढ़ईयों द्वारा किया जाता है.सॉंचे काटना तथा उत्कीर्ण एवं छपाई जो क्रमश: दूसरे एवं सातवें चरण के कार्य हैं, शिल्प कार्य में लगे हुए किसी भी व्यक्ति द्वारा नहीं किए जा सकते और दक्ष कलाकारों द्वारा दोनों कार्य किए जाते हैं. आकृति काटने वाले भी शिल्प के दक्ष श्रमिक होते हैं और वह तीसरे चरण का कार्य अर्थात जड़ाई के लिए विभिन्न रंगों की लकड़ी तथा हाथी दॉंत की कटाई करते हैं. कार्य का चौथा चरण जड़ाई कार्य है जो जड़ाई श्रमिकों द्वारा संपन्न किया जाता है. पॉंचवे, छठे एवं आठवें चरण के कार्य अर्थात लाप्पा लगाना, जड़ाई सतह को कोमल करना तथा चमक प्रदान करना क्रमश: इन्हें करने वाले कलाकारों द्वारा पूर्ण किए जाते हैं. 1. पटरे तैयार करना:- शीशम लट्ठों के कटे हुए टुकड़ों को ¾” मोटाई के पटरों में चीरा जाता है. चिराई हाथ आरी से तथा पटृटी आरी से की जाती है. लट्ठे का आकार पटरे की लंबाई एवं चौड़ाई निर्धारित करता है. गोल आरी की सहायता से पटरे के असमतल भाग सीधे किए जाते हैं. पटरे को तब हाथ आरी की सहायता से वांछित आकृति में काटा जाता है. आकृति अधिकतर प्रचलित रूपों में आयताकार या वर्ग में होती है. जब पटरे को अण्डाकार रूप दिया जाता है तो पटरे की अतिरिक्त लकड़ी को कठोर छैनी तथा मुगरे का प्रयोग कर छील दिया जाता है. इसे गोलाकार रूप देने के लिए प्रक्रिया समान होती है. आजकल डाइस को खराद पर घुमाया जाता है. अथवा पटरे की सतह को रंदाई द्वारा कोमल किया जाता है. इसी प्रकार टिकाई जाने वाली विभिन्न रंगों की लकडि़यों को 1/8” मोटाई की बारीक सीटों के रूप में चीरा जाता है. यदि चीरने का कार्य हाथ आरी से किया जाना है तो इतनी बारीक परतों को उतारने के लिए निस्संदेह उपकरणों के दक्ष संचालन की आवश्यकता होती है. न्युनतम क्षति की दृष्टि से हाथ आरी पर निर्भर रहने वाले श्रमिकों द्वारा विद्युत चालित उपकरणों, जो कुछ इकाईयों में स्थापित किए गए हैं, मुक्त रूप से लाभ उठाया जा रहा है. इस प्रकार वांछित आकार के पटरों का निर्माण तथा उनकी सतह को कोमल बनाना प्रथम चरण को पूर्ण करता है. इस चरण तक का कार्य बढ़ईयों द्वारा किया जाता है| 2.सॉंचे काटना:- जड़ाई की रूपरेखा डिजाइनरों द्वारा प्रदान की जाती है जो इन इकाईयों के नियमित कर्मचारी नहीं होते बल्कि मुक्त रूप से कार्य करते हैं. रूपरेखा डिजाइन निर्माताओं की रचनाएं होती हैं. प्रत्येक डिजाइन का स्केच ड्राइंग पेपर पर बनाया जाता है तथा जल रंगों की सहायता से इसमें रंग भरा जाता है. वह कलाकार जो सॉंचा काटता है एक बार डिजाइन का अध्ययन करता है. मूल डिजाइन पर एक पारदर्शी कागज रखकर डिजाइन को पेंसिल से ट्रेस कर लिया जाता है तथा एक नुकीली छैनी का प्रयोग कर सॉंचों को काट लिया जाता है. सॉंचे के टुकडों की संख्या रंगीन रेखाएं जो अंकित किए गए डिजाइन के अनुसार होती है, पर निर्भर करती है. एक स्केच को 30 से 100 भिन्न टुकड़ों में काटा जा सकता है. 3.जड़ाई के लिए विभिन्न रंगों की लकड़ी की कटाई:- सर्वप्रथम डिजाइन के अनुसार विभिन्न रंगों की लकड़ी की काटी गई शीटों तथा आकृतियों के चेहरे, पॉंव और हाथ बनाने के लिए हाथीदॉंत का चयन किया जाता है, काटे गए सॉंचे वांछित रंग की उसी शीट पर रखकर पेंसिल की सहायता से लकड़ी या हाथीदॉंत पर उसकी बाहरी रेखा ट्रेस कर दी जाती है| लकड़ी की शीट को सख्ती से शिकंजे में जमा दिया जाता है तथा कोपिंग आरी के द्वारा डिजाइन काटा जाता है. कोपिंग आरी के ब्लेड को इस प्रकार प्रवेशित किया जाता है कि इसके दॉंत काटी जाने वाली शीट पर उचित कोण पर रहें. गोलाईयां चीरते हुए ब्लेड का दक्षतापूर्ण संचालन किया जाता है. कलाकार एक स्टूल पर बैठता है तथा शिकंजा जिसमें आरी पटरा प्रयोग किया जाता है, कलाकार शिकंजे को पकड़ने की अपेक्षा एक हाथ से शीट को पकड़ता है और दूसरे की सहायता आरी चलाता है. टुकड़े काटने के पश्चात् खुरदरे किनारों को मुलायम रेती से कोमल किया जाता है| 4. जड़ाई करना:- लकड़ी तथा हाथीदॉंत शीटों से काटे गए खण्डों को वांछित नमूना निर्मित करने के लिए जोड़ा जाता है तथा प्रत्येक टुकड़े के किनारों पर गोंद लगाकर चिपकाया जाता है. टुकड़ों के मध्य रेखाएं चिपकाव के अनुकूल होती हैं. डिजाइन के टुकडों के संग्रह को उस पटरे पर रखा जाता है जिसमें इसकी जड़ाई की जानी है. पटरे पर डिजाइन की पूर्ण एवं स्पष्ट छाप अंकन उपकरण से मुगरे की सहायता निर्मित की जाती है. डिजाइन को तब हटा लिया जाता है और पटरे पर छपे अंकण को काछू चीरना द्वारा गहरा किया जाता है| अंकित भाग की माटा चीरना तथा मुगरा प्रयोग कर खुदाई की जाती है| माटा चीरना को उसी प्रकार काम में लिया जाता है जैसे कठोर छैनी को प्रयोग किया जाता है. लकड़ी को 1/8” गहराई तक खोदा जाता है और यह गहराई जड़ाई डिजाइन स्थापित करने के लिए पर्याप्त होगी क्योंकि जड़ाई डिजाईन के लिए काम में ली गई लकड़ी तथा हाथी दॉंत की शीटें 1/8” मोटाई की तैयार की जाती हैं| अंकित रेखाओं पर कार्य करने के लिए बहुत सावधानी आवश्यक है क्योंकि जड़ाई डिजाईन को आधार पर दृढ़ता से स्थापित किया जाना है. जड़ाई डिजाईन को आधार में जड़ने से पूर्व कलाकार वटगा चीरना तथा मुगरे की सहायता से आधार की खुरदरी सतह की कॉंट-छॉंट करते हैं. बढ़ई गोंद का पटरे के खोदे गए क्षेत्र में लेपन किया जाता है तथा जड़ाई डिजाईन को कलाकार द्वारा सावधानी से ठोकते हुए आधार में स्थापित कर दिया जाता है. साधारण जड़ाई डिजाईन कुछ स्थापन तथा जटिल जड़ाई डिजाईन अनेक स्थापन के पश्चात् लगाया जाता है| डिजाईनर द्वारा तैयार किए गए मूल डिजाईन के अनुसार उत्कीर्णकर्ता आाधार में स्थापित किए जाने वाले जड़ाडऱ् डिजाईन की पृष्ठभूमि रेखाएं चिह्नित करता है आैर टुकडों को जड़ाई कलाकार को लौटा देता है. कलाकार दासी(विशेषरूप से चीरी हुई लकड़ी की पतली खप्पचियां) या संकीर्ण जड़ाई स्थापित करने के लिए दासी चीरना की सहायता से लकड़ी को खोदकर संकीर्ण कोटर बनाता है. फूलों एवं वृक्षों के पत्ते या अन्य ऐसे डिजाईन चित्रित करने के लिए आधार में जड़ाई डिजाईन स्थापित करने के पश्चात् रिक्त स्थानों में प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकडे़ लगाए जाते हैं| 5. लाप्पा लगाना:- लाप्पा, शीशम की लकड़ी को ठीलनें से प्राप्त चूरा बढ़ई गोंद में मिलाने से तैयार पेस्ट का रिक्त स्थानों की भराई के लिए जड़ाई सतह पर हाथ से लेपन किया जाता है. लाप्पा को खाली सथानों में व्यवस्थित होने के लिए छोड़ दिया जाता है तथा समस्त अतिरिक्त सामग्री को हटा दिया जाता है| 6. जड़ाई सतह को कोमल बनाना:- जड़ाई किए गए टुकड़ों की सतह खुरदरी होती है जिसें कोमल किए जाने की आवश्यकता होती है. खुरदरी सतह को समतल बनाने के लिए कलाकार द्वारा रेती से अच्छी प्रकार घिसाया जाता है. सतह को कतरनों द्वारा और भी कोमल किया जाता है. तीखे औजार बारीक छीलते हैं तथा एक कोमल सतह प्रदान करते हैं. इस प्रक्रिया के पश्चात् उच्च श्रेणी के रेगमार द्वारा घिसाई की जाती है 7. उत्कीर्ण करना एवं छापा लगाना:- जड़ाई टुकड़े को अंतिम रूप देने से पूर्व डिजाईन की आकृतियों पर ऑंखें, नाक, मुँह और कान अंकित किए जाते हैं. यह कार्य उत्कीर्ण करने वाले द्वारा किया जाता है जो एक दक्ष कलाकार होता है. उत्कीर्णन तथा छायांकन उपकरणों को उसी प्रकार प्रयोग करते हैं जैसे पेंसिल को किया जाता है. उत्कीर्णकर्ता एक अच्छी सज्जा के प्रभावी छायांकन द्वारा डिजाईन को अंतिम रूप प्रदान करता है. डिजाईनों जैसे पत्ते, फूल, गोले, वर्ग, बिंदुओं सहित छापा लगाने के द्वारा किनारों तथा आकृतियों के पहनावे के डिजाईन बनाए जाते हैं. जब उत्कीर्णकर्ता के पास उसके द्वारा निर्मित अंकणों के लिए कोई योजना होती है तो उत्कीर्ण किए गए, छायांकित, तथा छापे गए चिह्नों की बनी पर कम मात्रा में ब्लैक आईवरी का लेपन किया जाता है. ब्लैक आईवरी नलियों में समा जाती है और अंकणों को अधिक सुस्पष्ट बनाती है| 8. चमक प्रदान करना:- जड़ाई कार्य का अंतिम चरण चमक प्रदान करने की प्रक्रिया है. उत्कीर्ण कार्य पूरा होने के पश्चात् मधुछत्ते के मोम तथा ब्लैक आईवरी घटकों को भार के अनुसार 4:1 अनुपात में तथा इसमें कुछ तारपीन मिलाने से प्राप्त मिश्रण काली पॉलिश का लेप किया जाता है. जब पॉलिश सूख जाती है तो इसे स्क्रेपर का प्रयोग कर निकाल दिया जाता है. अच्छी चमक के लिए, टुकडों को 0 श्रेणी के रेगमार से घिसाई की जाती है. लाख पॉलिश अंतिम सामग्री है जिसका जुड़ाई किए गए टुकड़े पर सुरक्षात्मक लेप किया जाता है. लिनन के साथ पॉलिश के अनेक लेप किए जाते हैं तथा प्रत्येक लेप को कतरन से अच्छी तरह घिसाया जाता है| तकनीकियाँ:- 1. पटरे बनाना. 2. सॉंचे काटना. 3. जड़ाई के लिए विभिन्न रंगों की लकड़ी काटना. 4. जड़ाई करना. 5. लाप्पा लगाना.6. जड़ाई सतह को कोमल करना. 7. उत्कीर्ण करना एवं छपाई. 8. चमक प्रदान करना. कैसे पहुचे :- वायुमार्ग द्वारा:- रायपुर की यात्रा के लिए हवाईमार्ग का प्रयोग अति प्रचलित एवं व्यवधान रहित माध्यम है. अनेक फ्लाइटें रायपुर का अन्य प्रमुख नगरों से संपर्क स्थापित करती हैं. आप दिल्ली, भुवनेश्वर, भोपाल तथा जबलपुर से रायपुर पहुँच सकते हैं| सडक के द्रारा:- जगदलपुर बस्तर जिला का जिला-मुख्यालय है जो राज्य के सभी प्रमुख शहरों एवं कस्बों सहित निकटवर्ती राज्यों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है. यह उत्तर में राज्य की राजधानी रायुपर से राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-49) द्वारा जुड़ा हुआ है तथा अनुमानिेत दूरी 300 कि.मी. है. यही राष्ट्रीय राजमार्ग-49 पूर्व में आंध्रप्रदेश के प्रसिद्ध बंदरगाह शहर विशाखापत्तनम तक विस्तृत है तथा इसकी जगदलपुर से अनुमानित दूरी 300 कि.मी. है| जगदलपुर भी निम्नलिखित प्रमुख कस्बों और राज्य और पड़ोसी राज्यों के शहरों के राज्य राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है. रेलमार्ग द्वारा:- जगदलपुर राज्य के तथा पड़ोसी राज्यों के निम्न प्रमुख शहरों तथा कस्बों से राजमार्गों द्वारा भी जुड़ा हुआ है. जगदलपुर में रेल सेवा की सुविधा सीमित है. केवल एकमात्र रेलवे लाइन किनाडुल (दंतेवाड़ा जिला) से आरंभ होकर विशाखापत्तनम तक जाती है जो जगदलपुर से गुजरती है. यह रेल लाइन ब्रॉड गेज है तथा पूर्णत: विद्युतिकृत है. रेल द्वारा जगदलपुर से विशाखापत्तनम तक तय की जाने वाली दूरी लगभग 320 कि.मी. है.