मध्य प्रदेश     इंदौर     इंदौर


 

 

इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

 

इन्‍दौर समूह के बारे में:-

 

इन्दौर समूह मध्यप्रदेश राज्‍य में इन्दौर जिला के अर्न्‍तगत आता है.

 

इन्‍दौर समूह 200 से अधिक कलाकारों तथा 15 एसएचजी आकार सहित सशक्‍त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्‍त कर रहा है.

 

हस्त मुद्रित कपड़े:-

 

हस्‍त छपाई वस्‍त्रों में सम्मिलित ब्‍लॉक/खण्‍ड तथा जाली छपाई, बाटिक, कलमकारी (कलम द्वारा हस्‍त छपाई) और बंधनी (गांठ देना और रंगना) का प्रयोग पलंगपोश से चादरों तक, परिधान सामग्री से गद्दियों और चित्रकम्‍बल उत्‍पादों तक होता है. सुप्रसिद्ध कशीदाकारी की गई सिल्‍क तथा सूती वस्‍तुएं प्राय: शीशों, शंखों, मनकों से सज्जित की जाती हैं तथा धातु वस्‍तुएं भी भारत में पाई जाती हैं. कशीदाकारी चमड़े, नमदा तथा मखमल आदि पर भी की जाती है. उद्योग के इस खण्‍ड में कार्य में लगे अनेक विन्‍यासकारों, खण्‍ड निर्माताओं, बुनकरों तथा बांधने वालों के अतिरिक्‍त लगभग पॉंच लाख सशक्‍त रोजगार बल की गणना होती है.


धागे से कपडा बांधकर इसे रंगना सादे कपड़े के टुकड़े पर आकृतियाँ बनाने का शायद सबसे पुराना और सबसे आसान तरीका है. यह सजावटी वस्त्रों का भी सबसे पुराना रूप है. इस तरह से आकृतियाँ बनाने के लिए रंगने की कला पर महारत चाहिये.

 
रेशा धो लिया जाता है. अक्सर यह एक रंगस्थापक में डूबा दिया जाता है ताकि यह डाई को अवशोषित कर सके. कपड़ा पहले लंबाई में फिर चौड़ाई में चार परतों में मोड़ा जाता है. इसके बाद लाल कीचड़ रंग, गेरू में डुबाये गए पिंड की मदद से बॉडी का नमूना  पूरी सतह पर बना दिया जाता है. इसके बाद कपडे को बाएं हाथ से दबाया जाता है ताकि एक ही धागे से एक गांठ दूसरी का अनुसरण करे. इस अंश के बाद, जो पृष्ठभूमि रंग में रखा जाना था, उन्हें बांध दिया जाता है, रंगने की प्रक्रिया दोहराई जाती है. कपड़ा धीरे धीरे अंतिम गाढ़े रंग में रंग जाता है, जो या तो एक शानदार लाल, बैंगनी, गहरा हरा होता है या फिर गहरा नीला या काला.  इसका तुलनात्मक रंगीन किनारा बना लिया जाता है फिर साड़ी को पतले धागों से बांध कर प्लास्टिक की चादर से ढक दिया जाता है जो मोटे धागों से मजबूती से बंधा होता है. किनारा इसके बाद दूसरे रंग में डुबाया जाता है. यह बांधने और रंगने का परंपरागत तरीका है जिसे उत्तर प्रदेश के सभी महत्वपूर्ण केन्द्रों में अपनाया जाता है.

 

कच्चीसामग्री:-


वस्त्र कई प्रकार की सामग्रियों से बनाये  जा सकते हैं. वे अपने घटक फाइबर के आधार पर रेशम, ऊन, लिनन, कपास, रेयान, नायलॉन और पोलिस्टर की तरह सिंथेटिक फाइबर के रूप में वर्गीकृत किये जाते हैं, और कुछ अकार्बनिक फाइबर जैसे स्वर्ण वस्त्र, कांच फाइबर और अदह वस्त्र के रूप में भी. वे अपनी संरचना या बुनाई के रूप में भी वर्गीकृत किये जाते हैं जिसमें ताना और बाना करघे में एक दूसरे को पार करते हैं.

 

प्रक्रिया:-

 

रंगाई किसी धागे या कपड़े का डाई से रंग बदलने की प्रक्रिया है. डाई कपड़े सजाने के लिए प्रयोग की जाती है. डाई का प्राथमिक स्रोत प्रकृति है लेकिन इसके साथ ही रंग बनानेवाला पदार्थ जानवरों या पौधों से भी निकाला जा रहा है.
 
पिछले दो शताब्दियों में, मानव ने विशिष्ट रंगों को प्राप्त करने और जल्दी रंगने के लिए कृत्रिम रंगों को तैयार किया है ताकि जब सामग्री धोई जाये तो रंग उड़े नहीं. डाई कपड़े पर सीधे लगा दी जाती है या फिर धागे या कपड़े को तरल डाई में या डाई के घोल में डाल दिया जाता है. प्राकृतिक या अवांछित रंगों को हटाने के लिए इसकी विपरीत विरंजन की प्रक्रिया अपनाई जाती है.
 
भारतीय रंजकों को  प्राचीन समय से तेजी से रंगों से रंगने की कला में महारत हासिल थी. उन्हें विदेशी यात्रियों द्वारा जादूगर कहा जाता था क्योंकि वे सफ़ेद कपडे को फीके नील के घोल में डालते थे और जब इसे निकालते थे तो यह उसके बाद भी सफ़ेद दिखाई देता था. यह केवल जब  ऑक्सीजन के साथ संपर्क में आता था तभी नीला होता था.  एकाधिक बार डुबाये जाने और हवा में सुखाये जाने के बाद रंग गाढ़ा होते थे. लोग इसे एक जादुई बदलाव की तरह देखते थे. छापेवाले वस्त्र पूरे उत्तर भारत में नियमित रूप से सामान्य और घरेलू कपड़ों के रूप में उपयोग किये जाते थे. उनका आवश्यक रूप से निर्यात होता था.

 
कर्डिंग(कंघी)  कच्चे या धुले फाइबर को ब्रश के द्वारा उन्हें  वस्त्रों के रूप में तैयार करने की प्रक्रिया है. फाइबर की एक बड़ी विविधता कुत्ते के बालों, लामा, सोया रेशम (सोयाबीन से बना फाइबर) से प्राप्त की जा सकती है. कपास, ऊन और बस्ट कार्ड किये जाने के लिए शायद सबसे आम फाइबर हैं. सभी फाइबर कारडेड नहीं हैं, जैसे उदाहरण के लिए, सन, कारडेड नहीं थ्रेश्ड है.
 
यह सूत कातने की एक प्रारंभिक प्रक्रिया है जिसमें रेशे अलग-अलग बांट लिए जाते हैं, सम मिलाकर कपड़े के रूप में बना दिए जाते हैं. कपड़ा  बहुत पतला या  मोटा  हो सकता है. कर्डिंग (कंघी) की प्रक्रिया कुछ अशुद्धियों को हटा देती है और एक निश्चित मात्रा तक छोटे या टूटे फाइबर को भी हटा देती है.  
 
कर्डिंग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कताई की तयारी के लिए फाइबर को खोला, साफ किया और सीधा किया जाता है. पहले उँगलियों का प्रयोग किया जाता है, फिर हाथ की तरह लकड़ी या हड्डी का एक औजार प्रयोग में आता है, फिर चमड़े से ढके लकड़ी (कार्ड्स) के दो टुकड़े कांटे या दांत के साथ प्रयुक्त होते हैं जो पहले के दोनों को हटा देते हैं. अपरिष्कृत कार्ड,  रबर से ढके और टेढ़े तारों के साथ दांतेदार तुला, अभी भी नवाजो महिलाओं द्वारा नियोजित किये जाते हैं. घूमने वाले सिलेंडरों के प्रयोग से जिसे लुईस पॉल ने १७४८ में पेटेंट कराया, आधुनिक कर्डिंग तिथियाँ मणि जाती हैं. एक यांत्रिक एप्रन फ़ीड १७७२ में तैयार किया गया था, और रिचर्ड अर्कराईट ने इसमें एक चिमनी जोड़ी जो की फाइबर को निरंतर चीरता रहता है. 
कर्डिंग (कंघी) कच्चे या धुले फाइबर को ब्रश के द्वारा उन्हें  वस्त्रों के रूप में तैयार करने की प्रक्रिया है.  यह कपास, ऊन और सबसे अच्छे फाइबर के लिए प्रयोग किया जाता है,. हस्त कार्दर्स कुत्ते के ब्रश की तरह हैं और एक समय में दो के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं, दोनों के बीच में उन को तब तक ब्रश किया जाता है जब तक सभी फाइबर एक झुंड में एक ही दिशा में न जाने लगें. मशीन कर्डिंग ड्रम पर ब्रश के साथ किया जाता है. अलग-अलग फाइबर मशीन में डाल दिए जाते हैं, फिर उन्हें उठाया जाता है और या तो कपास पर या उन पर ब्रश किया जाता है और फिर हटा दिया जाता है. इस उत्पाद कुछ और सुधारों के बाद कताई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
 
कर्डिंग अलग अलग अलग फाइबर या रंगों के मिश्रण को तैयार करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है. कुछ हाथ से कातने वाले कारीगर घर पर छोटा ड्रम रखते हैं, खास तौर पर ख़रीदे गए पहले से कर्देद फाइबर को अलग-अलग रंगों के फाइबर के साथ मिला कर मिश्रण बनने के लिए. कुछ ड्रम कर्देर्स इस निर्देश के साथ भी आते हैं की दो रंगों को एक साथ कैसे कार्ड किया जाये.

 

तकनीकियाँ:-


कर्डिंग (कंघी): कर्डिंग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कताई की तयारी के लिए फाइबर को खोला, साफ किया और सीधा किया जाता है.

 

विरंजन:  इस प्रक्रिया में, वस्त्र का प्राकृतिक या मूल रंग रसायन या सूर्य के प्रकाश द्वारा हटा दिया जाता है.
डाइंग (रंगना): यह प्रक्रिया वस्त्र में रंग जोड़ने के लिए की जाती है. रंजकों की एक विशाल श्रृंखला मौजूद है, जिनमे प्राकृतिक और सिंथेटिक से लेकर कुछ ऐसे भी उपलब्ध हैं जिनमें स्वरकम्पन आवश्यकता होती है.


कढ़ाई:  इस प्रक्रिया में, धागे एक तैयार वस्त्र में अलंकरण के लिए जोड़े जाते हैं.

 

स्टार्चिंग (माड़ी लगाना):इस प्रक्रिया में स्टार्च नाम का एक पदार्थ कपड़े को कड़ा बनने के लिए और पेपर बनने के लिए प्रयुक्त किया जाता है. जलप्रतिरोधी और अन्य समप्तियाँ.

 

 

कैसे पहुँचें: -


इन्‍दौर में एक विमानपत्तन है जो इंदौर का भारत में प्रमख शहरों से सम्‍पर्क स्‍थापित करता है. इंदौर दिल्‍ली एवं मुम्‍बई से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है. नियमित एक्‍सप्रेस ट्रेने हैं जो इ‍न्‍दौर को भारत में प्रमुख शहरों से जोड़ती है. इंदौर बस द्वारा उज्‍जैन (55कि.मी., 1 1/2  घंटा) तथा (भोपाल 55कि.मी., 5 घंटे) से भली भांति जुड़ा हुआ है.

 








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