इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं| दरियाबाद समूह के बारे में:- दरियाबाद समूह उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद जिला के अर्न्तगत आता है. दरियाबाद समूह 150 से अधिक कलाकारों तथा 10 एसएचजी आकार सहित सशक्त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्त कर रहा है. जरी, जरदोजी:- धातु तारों से की गई कशीदाकारी कलाबत्तू कहलाती है और जरी बनती है. जरी का मुख्य उत्पादन केंद्र उत्तरप्रदेश में वाराणसी है. यहां धातु सिल्लीयों को पिघलाकर छड़ें बनाई जाती हैं जिन्हें पासा कहा जाता है जिनसे उपचारित करने के बाद पीटकर लंबाईयां प्राप्त की जाती है. इसे तब तारें बनाने के लिए छिद्रयुक्त स्टील प्लेटों में से खींचा जाता है, इसके पश्चात् इसे रबड़ एवं हीरे की डाईयों के द्वारा पतला करने के लिए तारकशी प्रक्रिया की जाती है. अंतिम चरण बादला कहलाता है जहां तार को कसाब या कलाबत्तू बनाए जाने के लिए समतल करके सिल्क या सूती धागे के साथ बंटाई की जाती है. इसमें एक समान एकरूपता, तन्यता, मृदुता तथा नलिकारूप होता है. कसाब वास्तविक चॉंदी/स्वर्ण के साथ-साथ विलेपित चाँदी/स्वर्ण के रूप में या प्रतिकृति जिसमें उत्पाद को कम खर्चीला बनाने के लिए तॉंबे के आधार पर चॉंदी या स्वर्ण रंग का विलेपन किया जाता है, का स्थानापन्न हो सकता है. जरी धागा वृहत्तर रूप से बुनाई में परंतु अधिक विशिष्ट रूप से कशीदाकारी में प्रयोग किया जाता है. अधिक जटिल नमूने के लिए गिजाई या एक पतली, कठोर तार प्रयोग की जाती है; सितारा, धातु की एक तारे के समान छोटी आकृति, को फूल-पत्तियों के विन्यास बनाने में प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार की कशीदाकारी सलमा-सितारा कहलाती है. मोटा कलाबत्तू एक गूंथा हुआ स्वर्ण धागा है जो किनारों के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि पतली किस्म पर्सों या बटुओं की खींचने की डोर एवं झब्बों/फूंदनों, कंठहारों तथा डोरियों के सिरों में प्रयोग की जाती है. तिकोरा जटिल डिजाइनों के लिए एक सर्पिल मुड़ा हुआ स्वर्ण धागा है. हलके जरी धागे को कोरा कहा जाता है तथा अधिक चमकीला चिकना कहलाता है. वह उपकरण जो कशीदाकारी के लिए प्रयोग किया जाता है लकड़ी का चौकोर ढांचा होता है कारचोब कहते हैं तथा किनारी सिलने के लिए प्रयुक्त लकड़ी का पाया थापा कहलाता है. नीचे विभिन्न प्रकार के जरी कार्यों की सूची दी गई है. जरदोजी: यह एक भारी और अधिक भव्य कशीदाकारी कार्य है जिसमें विभिन्न प्रकार के स्वर्ण तार, सितारे, मनके, मोती, तार और गोटा प्रयोग किया जाता है. इसका प्रयोग वैवाहिक पहनावे, भारी कोटों, गद्दीयां, पर्दे, चंदोवे, पशु साज-समान, थैले, पर्स, बेल्ट तथा जूतियां सजाने-संवारने में होता है. वह सामग्री जिस पर इस प्रकार की कशीदाकारी की जाती है प्राय: भारी सिल्क, मखमल तथा साटिन होती है. अन्य के साथ-साथ सलमा-सितारे, गिजाई, बादला, कटोरी तथा मोती सिलाई के रूप होते हैं. मुख्य केंद्र दिल्ली, जयपुर, बनारस, आगरा तथा सूरत में हैं. वृद्ध युवाओं की सिखाते हैं और इस प्रकार यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहती है. कामदानी: यह एक हल्का सिलाई-कढ़ाई कार्य है जो हल्की सामग्री जैसे स्कार्फ, बुर्के, तथा टोपियों पर की जाती है. साधारण धागा प्रयोग किया जाता है तथा तार को सिलाई के साथ नीचे दबा दिया जाता है जो साटिन सिलाई प्रभाव उत्पन्न करता है. इस प्रकार उत्पन्न प्रभाव चमकदार होता है और हजारा बत्ती (हजारों बत्तियां) कहलाता है. मीना कार्य: इसे ऐसा इसकी मीनाकारी से समानता होने के कारण कहा जाता है. कशीदाकारी स्वर्ण में की जाती है. कतोकी बेल: यह दृढ़ मोटे कपड़े से निर्मित बॉर्डर का नमूना है तथा संपूर्ण सतह सीपियों की किनारियों से भरी जाती है. इस बॉर्डर तकनीक का एक भिन्न रूप जाली पर किनारी निर्मित करना तथा जरी की कढ़ाई तथा सितारों से भराई करना है. मकैश: यह प्राचीनतम शैली है और बादला या चॉंदी की तारों के साथ की जाती है. तार स्वयं सामग्री का छेदन करते हुए सिलाई पूर्ण करने के लिए सूई के रूप में कार्य करती है. तिल्ला और मारोरी कार्य : यह एक तरह की कशीदाकारी है जिसमें स्वर्ण धागों की सूई की सहायता से सतह के ऊपर सिलाई की जाती है। गोटा कार्य : नमूनों में बुनावट की विविधता बनाने के लिए बुनी हुई स्वर्ण किनारी को विभिन्न आकारों में काटा जाता है। जयपुर में वस्तु या साड़ी के किनारे को पंछियों, जन्तुओं और मानव आकृतियों में काटा जाता है, कपड़े के साथ जोड़कर स्वर्ण और चांदी के तारों से आबद्ध किया जाता है; इसके चारों ओर रंगीन सिल्क होता है। यह मीनाकारी से मिलता जुलता है। किनारी कार्य : किनारी कार्य में थॊड़ी सी भिन्नता होती है जिसमें केवल किनारों पर झब्बों के रुप में सजावट की जाती है। इसे अधिकतर मुस्लिम समुदाय के व्यक्तियों और महिलाओं द्वारा किया जाता है। कच्ची सामग्री:- मौलिक सामग्री : सिल्क.जरी,कपास,पोलीस्टर,जेकर्ड करघा; डोरी (धागा 80 नं/60 नं;पक्का धागे (धागा) 30 नंम्बर। सजावटी वस्तुएं : मोर के पंख रंग करने की सामग्री: (बुकानी) (रंग का पावडर) प्रक्रिया:- बुनाई किए जाने वाले नमूने के विन्यास को कागज पर खींचा जाता है। तिल्ली की सहायता से विन्यास को ताना-बाना जाली में से सूती वस्त्र पर स्थानांतरित किया जाता है। इस योजना को जाला कहते है, जिसमें पूर्ण रेखाचित्र नमूना सम्मिलित होता है। यह जाला करघा के ऊपरी भाग मे टांगा जाता है और ताने के धागों से बंधा होता है सिर्फ नियंत्रित बाना धागों को विन्यास के अनुसार उठाया जाता है। पंक्ति दर पंक्ति चलते हुए बाने के धागे के साथ अतिरिक्त जरी/सिल्क बाना धागों को ऊपर उठाए गए भागों में प्रविष्ट किया जाता है। जेकार्ड करघा इस जरीकार्य की सजावट के लिए; जाला उपकरण के स्थान पर पंच कार्डसन प्रतिस्थापित हो गया है। तिब्बती बुना हुआ चढावा ग्यासार बहुत ही बारीकी से बुना होता है। सिल्क/जरी के धागों के अतिरिक्त साटन बुनाई में पूरी सतह को पंख से बनाने के लिए मोर के पंखो का प्रयोग किया जाता है। गहरे लाल, पीला और सफेद साटन पृष्ठभूमि में स्वर्ण और चाँदी की जरी का उपयोग करके बुना जाता है। तकनीकियाँ:- गोटापट्टा और कटाई तकनीक :- सामान्यतया, चिकन कशीदाकारी के लिए सूक्ष्म सफेद लड़ीयुक्त सूत का प्रयोग होता है। कुछ टांकों को वस्त्र के सामने के भाग में लगाया जाता है, अन्य को पीछे। शैला पाईने ने चिकन कशीदाकारी पुस्तक में वर्णित करती है कि छ: प्रकार की मौलिक सिलाई हैं जिन्हें पुष्प और पत्तियां उकेरने के लिए टांकों की श्रृंखला के संयोजन में प्रयुक्त किया जाता है। खिंचाई कार्य (चीकन कार्य में हिन्दी शब्द जाली से जाना जाता है जिसका अर्थ है छिद्रीत जाल युक्त एक खिड़की, जिसमें से बाहर देखा जा सकता है परंतु इसके अन्दर नहीं) और खटाऊ (गोटा-पट्टा और कटाई तकनीक, जहाँ वस्त्र के एक टुकडे पर दूसरे टुकड़े की गोट लगाई जाती है और उसके बाद काटा जाता है) रंगपटल को पूरा करता है। कैसे पहुचे :- इलाहाबाद एक घरेलू दिल्ली के साथ जुड़ा हुआ हवाई अड्डा है. हालांकि, अन्य आसपास के हवाई अड्डों वाराणसी (147 किमी.) और लखनऊ (210 किमी.) कई एयरलाइन हैं . शहर से सेवा महत्वपूर्ण शहरों अर्थात के साथ सीधा रेल संपर्क हैं. कलकत्ता, दिल्ली, पटना, गुवाहाटी, चेन्नई, मुम्बई, ग्वालियर, मेरठ, लखनऊ, कानपुर और वाराणसी. सभी एक्सप्रेस और सुपर फास्ट ट्रेनों इलाहाबाद स्टेशन .इलाहाबाद में एक पड़ाव है राष्ट्रीय राजमार्ग 2 और 27 पर स्थित इलाहाबाद से गुजर रहा है. सड़क परिवहन बहुत सुविधाजनक है. एक बस से राज्य के किसी भी हिस्से से इलाहाबाद तक पहुँच सकते हैं.