इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं| सवाई माधोपुर समूह के बारे में: - सवाई माधोपुर समूह राजस्थान राज्य के अंतर्गत जयपुर जिले में आता है. सवाई माधोपुर समूह में मजबूत कार्य बल के रूप में 200 से अधिक कारीगरों एवं 25 स्वयं सहायता समूह तैयार करने की क्षमता है. आवागमन के कारण दिन-ब-दिन कार्य-बल में वृद्धि होती जा रही है. हस्त छ्पाई:- राजस्थान में रेगीस्तान की रेतीली श्रृंखलाएं हैं जहां वस्त्र रंगाई की विलक्षण तकनीक व्याप्त है. इस तकनीक को अजरख कहा जाता है और वस्त्र के दोनों ओर ज्यामितीय नमूनों सहित गहरे नीले तथा लाल रंग में छपाई होती है. यह तकनीक जटिल है और इसमें आरंभिक धुलाई, स्थापक लगाना, प्रतिरोधी छपाई, गोंद उतारना तथा रंगाई चरण सम्मिलित हैं. गाच(एक कीचड़) प्रतिरोधी तथा करियाणा, जो बबूल वृक्ष का गोंद तथा चूना या लासा होता है, प्रयुक्त प्रतिरोधी पदार्थ होते हैं. चूना नरम संरचना प्रदान करता है तथा प्रतिरोधक का दरारों से बचाव करता है. अंतिम रंगाई के पश्चात् वस्त्र को धूप में सुखाया जाता है. इसे प्रत्येक रात्रि गाय के गोबर के घोल में डुबोया जाता है तथा पूरी रात एक पत्थर के नीचे रखा जाता है. अगली सुबह इसे नदी में धोया जाता है और रेत पर सुखाया जाता है. जब यह अर्द्ध शुष्क होता है तो वस्त्र पर लगातार जल की फुहारें डाली जाती हैं. तीसरे दिन अंतत वस्त्र को नदी में धोया जाता है और कार्यस्थल पर ले जा कर सुखाया जाता है.
चन्देरी स्टोल्स और दुपटे, मंगलगिरी सलवार सूट और साडियां, महेश्वरी सलवार सूट और साड़यां, तुषार सलवार सूट और साड़यां,जार्जेट साडियां,शिफॉन साडियां, खादी सुती और खादी सिल्क में छपाई किए हुए वस्त्र, छपाई की हुई सूती वॉयल और सीटींग । हस्त छपाई वस्त्रों में सम्मिलित ब्लॉक/खण्ड तथा जाली छपाई, बाटिक, कलमकारी (कलम द्वारा हस्त छपाई) और बंधनी (गांठ देना और रंगना) का प्रयोग पलंगपोश से चादरों तक, परिधान सामग्री से गद्दियों और चित्रकम्बल उत्पादों तक होता है. सुप्रसिद्ध कशीदाकारी की गई सिल्क तथा सूती वस्तुएं प्राय शीशों, शंखों, मनकों से सज्जित की जाती हैं तथा धातु वस्तुएं भी भारत में पाई जाती हैं. कशीदाकारी चमड़े, नमदा तथा मखमल आदि पर भी की जाती है. उद्योग के इस खण्ड में कार्य में लगे अनेक विन्यासकारों, खण्ड निर्माताओं, बुनकरों तथा बांधने वालों के अतिरिक्त लगभग पॉंच लाख सशक्त रोजगार बल की गणना होती है.
कच्ची सामग्री:- कोइ भी तंतु या रेशा ,या वह जिसे वस्त्र या कपड़ा तैयार किया जा सकता है,और परिणामस्वरूप स्वयं एक सामग्री है। यह शब्द मूल रुप से केवल बुने हुए कपड़े को ही निर्दिष्ट करता था वर्तमान में बुने हुए, जड़ाईई किए गए हुआ,नमदा और गुच्छा किये हुए कपडो को भी सम्मिलित करता है। वस्त्र उत्पादन में प्रयुक्त होने वाली मौलिक सामग्री रेशे हैं, चाहे प्राकृतिक स्रोतों (उदाहरण ऊन) प्राप्त किया गया है या रासायनिक पदार्थों से उत्पादित (उदाहरण पोलिस्टर) किया गया है। वस्त्र को उनके घटक रेशों के अनुसार सिल्क, ऊन, छालटी,सूती में वर्गीकृत किया जाता है, इस प्रकार के रेशे रेयोन, नायलोन और पोलिस्टर हैं और कुछ अकार्बनिक रेशे जैसे स्वर्ण वस्त्र, काँच के रेशे और एस्बेस्टोस कपड़ा है। प्रक्रिया:- वस्त्र हस्त छपाई कपड़े पर निश्र्चित नमूने या विन्यास में रंग करने की प्रक्रिया है। समुचित रूप से छ्पे हुए कपड़े पर रंग इस प्रकार जुड़े होते हैं कि बारम्बार धुलाई और घिसने से भी नष्ट नहीं होता। वस्त्र छपाई डाई करने से संबंधित है लेकिन जहां तक समुचित डाई में सम्पूर्ण वस्त्र को एकसमान रंग में रंगा जाता है, छपाई में केवल इसके निश्र्चित भागों में और स्पष्ट निर्दिष्ट नमूनों में एक या ज्यादा रंग लगाये जाते हैं। छ्पाई में काष्ठ के ब्लॉक, स्टेन्शिल, नक्काशी की गई प्लेट, रोलर्स, या सिल्कस्क्रीन का कपड़े पर रंग लगाने में प्रयोग होता है। छ्पाई में प्रयोग किए जाने वाले रंगो में गाढ़ी डाई सम्मिलित होती है ताकि केशिका आकर्षण के कारण रंग को नमूने या विन्यास की सीमाओं से बाहा फैलने से बचाव किया जा सके। पारम्परिक वस्त्र छपाई तकनीक को चार शैलियों मे बांटा जा सकता है:
प्रतिकार करना और उतारने की तकनीकें संयुक्त तकनीक के रुप मे विशेष रूप से 19 वीं सदी में प्रचलन में थी, जिसमें नील को अन्य रंगो की ब्लॉक-छपाई से पहले नीली पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए प्रयोग किया जाता था।(1) अधिकतर आधुनिक औद्योगिकृत छपाई सीधी छपाई तकनीकों का प्रयोग करती हैं।
तकनीकीयाँ:- इस रंग में अलग रंग सहित अपेक्षित नमूना आधार की सतह पर स्याही की छोटी बूंदों को जो पूर्वनिश्चित सूक्ष्म सजावट के विशिष्ट डाई रंग होते हैं, प्रक्षेपित कर तैयार किया जाता है। यह वस्त्रों के सजावटी महत्त्व में वृद्धि करने के लिए रंगाई करने का प्राचीनतम रूप है। यह बंधाई और रंगाई की परम्परागत तकनीक है, एक स्प्रे यंत्र को स्क्रीन पर रंग डालने के लिए प्रयोग किया जाता है और एक आकृति अम्बार क्रियान्वित करने के लिए वैद्युत आलेपन किया जाता है। इस तकनीक में ताने और बाने दोनों को बाँधना सम्मिलित है, जहाँ मूल रंग बनाए रखने और बाद में डाई करने की आवश्यकता होती है। कैसे पहुँचें: - सवाई माधोपुर का इसका अपना विमानपत्तन नहीं है. निकटतम विमानपत्तन जयपुर में है. अनेक विमान कम्पनियों की नियमित सेवाएं इस विमानपत्तन पर हैं तथा इसे अन्य महत्त्वपूर्ण जैसे दिल्ली, मुम्बई आदि से जोड़ती हैं. सवाई माधोपुर उत्तर भारत के अनेक महत्तवपूर्ण शहरों जैसे दिल्ली, जयपुर एवं अन्यानय से सड़क द्वारा अच्छी प्रकार सम्बद्ध है. शहर का अपना रेलवेस्टेशन है. एक अच्छी तरह बिछाया गया रेलवे जाल सवाई माधोपुर का देश में प्रमुख रेलवे स्टेशनों जैसे दिल्ली, जयपुर एवं अन्य अनेकों से संपर्क स्थापित करता है.