इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|
राजनगर समूह के बारे में:-
राजनगर समूह बिहार राज्य में मधुबनी जिला के अर्न्तगत आता है|
राजनगर नगर समूह 315 से अधिक कलाकारों तथा 9 एसएचजी आकार सहित सशक्त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्त कर रहा है|
लोक चित्रकला:-
मधुबनी, हिमालय की छोटी पहाडि़यों में मिथिला में, मधुबनी चित्रकला का आश्रय है. पारंपरिक रूप से, उत्सव एवं धार्मिक अवसरों पर तथा सामाजिक समारोहों पर मिथिला की महिलाएं अपने घरों एवं आंगनों को चित्रों से सजाती थी जो वैभवशाली, रंगों से परिपूर्ण तथा गहन रूप से धार्मिक होते थे. इन चित्रों के विषय देवी-देवता, पौराणिक एवं प्रकृति होते थे. महिलाएं उनकी काव्यात्मक चित्राकृतियों जैसे राम-सीता, कृष्ण-राधा, शिव-गौरी में समृद्ध सांसारिक रंगों – लाल, पीले, गहरे नीले तथा नीले- का प्रयोग करती थी. यह मंदिरों तथा खोवार, घर का अंदरूनी कक्ष जहां दुल्हा एवं दुल्हन अपना वैवाहिक जीवन आरंभ करते हैं, के लिए बनाए जाते थे. महिलाएं इन बोलते प्रतीत होते हुए चित्रों को बनाने के लिए मूल सामग्री जैसे गोंद, धागे तथा माचिस की तिल्ली या पतली बॉंस की कपास में लिपटी तिल्लीयों का प्रयेग करती थी. महिलाएं इस पारंपरिक कला को अपनी पुत्रियों को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करती रही और यह कला आज भी जीवित है एवं फलफूल रही है|
मिथिला की सामान्यत: उपजाऊ भूमि पर 1960 के भीषण अकाल नें मिथिला के लोगों को आय के स्रोत के रूप में कृषि के अतिरिक्त अन्य विकल्प की ओर देखने के लिए बाध्य किया. उन्होंने मधुबनी की महिलाओं से उनकी कला कागज एवं कपड़े पर चित्रित करवाई और आज मधुबनी संपूर्ण विश्व में लोककला के एक अति प्रसिद्ध रूप में प्रत्यक्ष है. इन चित्रों के लिए आज भी वही विषय और तकनीक प्रयुक्त होते हैं. कैनवास दीवारों तथा फर्शों से बदलकर कपड़ा तथा कागज एवं पैपियर मैसे हो गए|
मांगलिक अवसरों तथा उत्सवों पर तथा विवाह एवं जन्म के अवसरों पर महिलाएं उनकी झोपडियों में मिट्टी के फर्शों पर अर्पण तथा धूलि चित्र या धूल चित्रकारी करती है. ज्यामित्तीय तथा अति सुरूचिपूर्ण ये चित्र खुले ज्योतिषीय मानचित्र हैं जो युगों तक ज्ञान के भंडार हैं. संथाल परगना में लोकचित्रकारी आदिवासियों के एक समुदाय द्वारा की जाती है जिन्हें चित्रकार कहा जाता है. वे पारंपरिक ढंग से खर्रा चित्रण करते हैं जिनमें कथाएं एवं नैतिक शिक्षाएं चित्रित होती हैं. वे खर्रा चित्र को एक संथाल गॉंव से दूसरे तक ले जाते हैं और कथा का गायन करते हैं जिसके लिए उन्हें कुछ पारिश्रमिक प्राप्त होता है|
कच्चा सामग्री:-
1. लकड़ी का बोर्ड (जलरूद्ध)2. लंबा कपड़ा/ पीपलिन3. फेवीकोल 4.पीला आक्साइड 5. चाक 6. अरबी गोंद 7. स्वर्ण पन्नी 8. रत्न/नग9. पोस्टर कलर रंग.10. गोल ब्रश- 0,00,000,1,3,6, 11. समतल ब्रश -2 12. पीला कार्बन
प्रक्रिया:-
तंजावुर चित्रकला की विशेषता यह है कि चित्रों में आकृतियां गोलाकार शरीर तथा अण्डाकार चमकीले नेत्रों की होती हैं जो पर्दों तथा मेहराबों से घिरी हुई होती है. ये चित्र अंधेरे कक्ष में चमकते हैं|
नम्र कैनवास तथा ब्रश से सुंदरता की संपुर्ण अभिव्यक्ति तंजौर चित्र निर्मित किया जाता है. इस चित्र के लिए प्रयुक्त कैनवास पहले कटहल की लकड़ी होती थी परंतु आधुनिक चित्रकार लकड़ी का बोर्ड प्रयुक्त करते हैं. अरबी गोंद का प्रयोग कर लकड़ी के बोर्ड पर कपड़े की परत चिपका दी जाती है. चूना-पत्थर घोल तथा संयोजन सामग्री की एकसमान परत चढ़ाई जाती है और कपड़े को सूखने दिया जाता है. कलाकार तब कैनवास पर सर्तकतापूर्ण चित्रों की रूपरेखा बनाता है जबकि चूना-पत्थर घोल और बंधन सामग्री का प्रयोग चित्रों में सजावट तथा अलंकरण उत्कीर्ण में किया जाता है|
तकनीक:-
1. कपड़े से मांड निकालना (इसे एक घंटे तक पानी में भिगोना ओर तब कपड़े को सुखाना)2. लगभग 60 मि.ली. फेवीकोल लेकर इसे ½ कप पानी में अच्छी प्रकार मिलाए (दूध के जैसा होने तक) 3. कपड़े को फेवीकोल के इस घोल में डुबोएं तथा निचोड़ें. इस प्रक्रिया को 5 से 6 बार दोहराएं. (ताकि कपड़ा इसे सोख ले और भली प्रकार फेवीकोल की परत चढ़ाई जा सके). 4.कपड़े को हल्का निचोड़ें तथा इसे लकड़ी के बोर्ड पर चिपकाएं.चिपकाने के लिए:- पहले कपड़े को बोर्ड के एक सिरे पर चिपकाएं तब कपड़े को विपरीत दिशा में खींचकर कपड़ें को अच्छी प्रकार चिपकाएं. हवा के बलबुलों तथा सिलवटों को हटाने के लिए हथेलियों का प्रयोग कर कपड़े को मध्य से किनारों की तरफ दबाएं. 5. अब इसी प्रक्रिया से तीसरी एवं चौथी दिशाओं को चिपकाएं. 6. फेवीकोल-पानी के मिश्रण (यदि शेष बचा हुआ है) को बोर्ड पर बिखेरें और समान रूप से फैला दें. 7. सूखने तक इस बोर्ड को धूप में रखें.
कैसे पहुँचें: -
हवा से:-
निकटतम विमानपत्तन पटना है जहां से देश के सभी महत्त्वपूर्ण कस्बों एवं शहरों के लिए नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं|
सड़क मार्ग से: -
मधुबनी राष्ट्रीय राजमार्ग 104 द्वारा दरभंगा से जुड़ा हुआ है|
ट्रेन से: -
मधुबनी रेलवेस्टेशन दरभंगा जंक्शन से सीधे जुड़ा हुआ है.