इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं| घरौंडा खण्ड समूह के बारे में: -घरौंडा खण्ड समूह हरियाणा राज्य के अंतर्गत करनाल जिले में आता है. घरौंडा खण्ड में मजबूत कार्य बल के रूप में 500 से अधिक कारीगरों एवं 50 स्वयं सहायता समूह तैयार करने की क्षमता है.आवागमन के कारण दिन-ब-दिन कार्य-बल में वृद्धि होती जा रही है.
गालीचे और दरीयां:-करनाल प्रशिक्षित कालीन बुनकरों का प्रमुख शहर हैं। कालीन को कठोर गुणवत्ता प्रदान करने के लिए प्रत्येक वर्ग इंच में लगभग 60 गांठो सहित गुँथे हुए सूती धागे को पटसन की सुतली के साथ प्रयोग किया जाता है। सूती और उनी कालीन शाहजहाँपुर और आगरा में निर्मित किए जाते हैं जहां बुनकर बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए परम्परागत और नए विन्यास तैयार करते हैं। उत्तरप्रदेश में भारत में वर्तमान में उपलब्ध 90% कालीन कार्य और 80%बुनकर हैं। राज्य में भदोई, मिर्जापुर और आगरा प्रमुख कालीन केन्द्र हैं। इनमें विशेष रूप से वर्णन करने योग्य है क्योंकि इस जिले और इसके 500 गांवों की अर्थव्यवस्था पूर्णतया कालीन व्यवसाय पर निर्भर है।कालीन बुनाई के लिए उच्च स्तरीय दक्षता और निपुणता की आवश्यकता होती है और सामान्यत पश्र्चिम कामेन्ग मे मोंपा महिलाओं और उतरी सियांग जिले की जनजातियों द्वारा की जाती है। कालीन को चमकदार रंगो में और प्रमुख रूप से तिब्बती चित्रों जैसे ड्रैगन या ज्यामितीय या फूल पत्तियों के विन्यास बुना जाता है, जो क्षेत्र में तिब्बती-बौद्ध प्रभाव दर्शाते हैं। उन के रंगो के मूल रुप से वनस्पति और अन्य प्राकृतिकडाई स्रोतों से प्राप्त किया जाता है, यद्यपि आजकल कृत्रिम डाई और रसायनों का सामान्य रूप से सामान्य रुप से प्रयोग होता है।कच्चीसामग्री:-कालीन ढेर सारे रंगे हुए धागों के ढेर से बनता है, प्राथमिक बैकिंग जिसमे धागे सिले होते हैं, द्वितीयक बैकिंग जो कालीन को मजबूती देता है, सरेस जो प्राथमिक और द्वितियक बैकिंग को बांधता है, और ज्यादातर मामलों में कालीन के नीचे एक गद्दी लगाया जाती है जो अधिक नरम और अधिक आरामदायक अनुभव देती है.दोनों प्राथमिक और द्वितीयक बैकिंग ज्यादातर बुना हुआ या बिना बुना हुआ पोलिप्रोपीलिन (एक मजबूत किस्म का प्लास्टिक) होती हैं फिर भी कुछ द्वितीयक बैकिंग अगर बुनते समय गांठ जैसी नजर आये तो वो प्राकृतिक फाइबर जूट से बनी हो सकती हैं.बैकिंग्स को बांधने के लिए प्रयोग किया गया गोंद सार्वभौमिक सिंथेटिक लेटेक्स (रबर वनस्पतिक दूध) है. सबसे आम पैडिंग रिबौंड (युरेथीन का बांध) है, हालांकि सिंथेटिक लेटेक्स के विभिन्न रूपों जैसे पोलियुरेथीन या विनाईलका का प्रयोग भी किया जा सकता है. रिबाउंड युरेथीन का पुनर्चक्रित अवशेष है जिसे सामान आकार के टुकड़ों में काटकर परतों में दबाया जाता है. स्क्रैप कि समान आकार के टुकड़ों में कटा हुआ है और परतों में दबा पुनर्नवीनीकरण है. हालांकि कुछ दुर्लभ कालीन की गद्दियाँ घोड़े के बाल या जूट से बनाई जाती हैं. प्लास्टिक की उपरी परत कालीन की चिकनी सतह को सुनिश्चित करने के लिए आमतौर पर जोड़ी जाती है.प्रक्रिया:- रेशों की खुली लडियां स्टैप्लस कहलाती हैं जो कालीन निर्माण के लिए आरम्भिक रूप से प्रयोग की जाती है। स्टैप्लस को एक होपर में रखा जाता है जहॉं इन्हे गर्म, चिकनाईयुक्त और छिपटियों के रूप में तैयार किया जाता है, जो रेशों की एक लंबी चरखी पर बंधे होते हैं। वहां से कालीन-तैयार करने की प्रक्रिया आरंभ होने के लिए तैयार होती है। एक सूई कालीन रेशों को वस्त्र के टुकड़े जिसे कालीन आधार कहा जाता है, के नीचे की ओर धकेलती है। जैसे ही सूई आधार में नीचे की ओर छल्ला निर्मित करते हुए वापस जाती है एक हुक जिसे लूप कहा जाता है रेशों का स्थान पर बनाए रखता है। यह थोड़ा उबाऊ लगता है, और यह स्वचालित गुच्छे निर्मित करने की मशीनों की खोज से पूर्व प्रलन में अवश्य रही थी। यदि कालीन को गुच्छित करने पर विचार किया जाए तो वास्तविक रचनाकार्य यहाँ पर समाप्त हो जाता है। यदि कटाई ढेर कालीन तैयार किया जाना है, हालांकि, तब तब गुच्छित कालीन एक अतिरिक्त चरण से गुजरता है जहाँ लूपरों को अलग ढेर लडि़यों को थामे तीखी छुरीयों पर खींचा जाता है। यह लूपों को अलग लडियों में काट देता है जो एक कट ढेर कालीन निर्मित करता है। रंगाई प्रक्रिया वांछित दृश्य प्रभाव उत्पन्न करने के लिए उत्पादन के विभिन्न चरणों में हो सकती है। अन्य पद्धतियां, लगातार डाई करना, घुमाना और तैयार कालीन पर स्प्रे डाई करना है। एक अन्य भी, पूर्व डाई, कालीन प्रक्रिया होने से पूर्व की जाती है। एक कालीन पूरा होने पर इसकी धुलाई की जाती है, सुखाया जाता है और इसमें निर्वात किया जाता है। त्रुटिपूर्ण ढेरों को कतर दिया जाता है और इसे तब कन्वेयर बेल्ट पर अंतिम कर्मचारी के पास भेजा जाता है जो एक ढेर यंत्र का प्रयोग कर किसी खाली छूट गए स्थान की भराई करता है। कालीन अब तैयार हो जाता है। तकनीकियाँ:- ऊर्ध्वाधर साधारण रंगीन धागे, जो एक करघा धरणी से उस करघा धरणी तक खींचे होते हैं जिस पर गांठें लगी होती हैं। क्षैतिज साधारण रंगीन धागे जो दरी की चौड़ाई में ताने की डोरी से ऊपर और नीचे तथा गांठों की प्रत्येक पंक्ति में से गुजरते हैं। ताना गांठों की पंक्तियों को यथास्थान बनाए रखता है और संरचना को मजबूत करता है। नमूने के अनुसार गांठों में विभिन्न रंग प्रयेग किए जाते हैं। संपूर्ण विश्व में प्रकार की गांठ तकनीकें हैं, दोहरी या तिकोनी या एकसमान गांठें तुर्कों द्वारा प्रयोग की जाती हैं अरैर तुर्की गांठ के रूप जानी जाती हैं। इस तकनीक में प्रत्येक गांठ में दो तानों के चारों ओर छल्ला बनाया जाता है, दोनों सिरों को खींचा जाता है और काट दिया जाता है। अन्य सामान्य गांठ लगाने की तकनीक ईरान, चीन और अफगानिस्तान में प्रयुक्त की जाती है और असमान या इकहरी गांठ या ईरानी गांठ कहलाती है, जहां गांठ का एक सिरे का एक ताने पर छल्ला बनाया जाता है और दूसरा सिरा सीधा आता है, दोनों सिरों को खींचा जाता है और काट दिया जाता है। कैसे पहुँचें: -करनाल देश में सभी महत्वपूर्ण नगरों से अच्छी प्रकार रखरखाव किए गए रेल एवं सड़क जाल से जुड़ा हुआ है. यह शहर दिल्ली से 123 किलोमीटर तथा चंडीगढ़ से 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.