इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं| श्योपुर कलां समूह के बारे में:- श्योपुर कलां समूह मध्यप्रदेश राज्य में भोपाल जिला के अर्न्तगत आता है. श्योपुर कलां समूह 300 से अधिक कलाकारों तथा 25 एसएचजी आकार सहित सशक्त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्त कर रहा है. काष्ठ नक्काशी :- जनजातियों को नक्काशी करने तथा अति आर्कषक वस्तुएं निर्मित करने का वरदान प्राप्त है. अनाज मापने के लिए लकड़ी की चौकियां बनाई जाती हैं. भरिया का विवाह मण्डप तथा गोंड तथा कोरकू के लकड़ी के दरवाजे आकर्षक एवं अद्वितीय होते हैं. दरवाजे, आसन तथा आधार स्तम्भ कुम्भी नामक लकड़ी से बनाए जाते हैं. संगीत वाद्य ढांक, मण्डल, ढोल तथा धंग लकड़ी से बनाए जाते हैं और निमाड़ जनजातियों द्वारा बनाए जाते हैं. लकड़ी के प्रकाशक होते हैं जिन्हें बहुत कलात्मक ढंग से बनाया जाता है. अन्य नक्काशी की गई वस्तुओं में सम्मिलित हैं मंदिर और देवता, शादी के लिए उत्कीर्ण की गई नीची तिपाई, देवताओं के लिए नक्काशी किए गए पंखे, उर्वर युग्म और विभिन्न प्रकार के छोटे अनुष्ठानिक बर्तन। एक मीटर लंबे दण्ड के दोनों ओर स्थापित देवता की नक्काशी की गई पट्टी अन्य आनुष्ठानिक वस्तु होती है। इन पट्टियों को कावड़ी कहते हैं और भगवान मुर्गुन अथवा कार्तिकेय के समक्ष की गई शपथ को पूरा करने के लिए व्यक्ति के कंधे पर ले जाया जाता है। काष्ठ से बने हुए घरेलू रसोई उपकरण जैसे पीसने का उपकरण, सब्जी काटने का सरौता, परोसने के लिए प्रयोग का चम्मचा वस्तुएं दहेज मे दी जाती है। खराद पर निर्मित और चमकदार रंगों में रोगन किए गए और वहन करने योग्य कीमतों में खिलौने सम्पूर्ण राज्य में लोकप्रिय है। दक्षकारों के कौशल का प्रदर्शन करते हुए नक्काशी किए गए काष्ठ खिलौने, गुडियां और हाथी निर्मित किए जाते है। काष्ठ नक्काशीकार्य की कच्ची सामग्री:- मौलिक सामग्री : भुरकुल या गुलर की लकड़ी, आम की लकड़ी, हरा बांस,शीशम की लकड़ी रंगाई सामग्री : अल्टा,हल्दी मौलिक सामग्री : दूधिया लकड़ी, लाख, लाख छड़, तेल, पुराना कपड़ा, रंगीन कागज मौलिक सामग्री : कपड़े के बचे हुए टुकडे, बांस, कतरनें, कागज रंगाई सामग्री : डाई रंग मौलिक सामग्री : पुन्की लकड़ी,इमली के बीज, चूना सरेस, ब्रश, पानी के रंग, तैलीय रंग, लाल सांडर्स लकड़ी मौलिक सामग्री : कपड़ा, रंग, भराव के लिए अप्रयोज्य सामग्री, रंगीन कागज,मिट्टी काष्ठ नक्काशीकार्य की प्रक्रिया:- निर्मित किए जाने वाले आकार के अनुसार खण्ड में से लकड़ी को काटा जाता है। टुकड़े को साफ और कोमल बनाया जाता है। बनाए जाने वाले खिलौने के विन्यास को इस टुकडे पर अनुरेखण किया जाता है। अतिरिक्त काष्ठ को विन्यास के अनुसार काट कर हटा दिया जाता है। छैनी पर हथोड़े के द्वारा हल्की थपकी दी जाती है, जिसे आकार दिए जाने वाले स्थान पर रखा जाता है। इसे रेती से कोमल बनाया जाता है और रंगा जाता है। शरीर के भिन्न हिस्सो को रंग करने के साथ रंगाई आरंभ होता है। आगे किसी निश्र्चित विन्यासों के परिधानों को ब्रश के बारिक स्पर्श द्वारा अंकित किया जाता है। मुखाकृति लक्षणों को अंत में जोड़ा जाता है। शुक (तोता) काष्ठ का खिलौनें हैं जिन्हें शादी के मंडप पर लगाया जाता है। मोसाला (बीच का भाग), चरखी और शुक (तोता) को समान प्रक्रिया से बनाया जाता है। इन्हें बाँस की किल्लयों (पेंच) द्वारा जोड़ा जाता है। शादी के स्तम्भ को पीले (हल्दी), लाल (अल्टा) और हरे रंगो से रंगा जाता है। लाख भराई कार्य लाख की छड़ को घूमती हुई वस्तु के ऊपर दबाते हुए किया जाता है। अच्छी पॉलिश प्रदान करने के लिए इसी समय तेल भी लगाया जाता है। एक प्रकार के पुष्पित कैक्टस के पत्तों को पॉलिश करने के लिए प्रयोग किया जाता है। वस्तुओं की एक ही रंग में है या भिन्न रंगो की पट्टियों में रंगाई की जाती है। जटिल विन्यासों और रंग योजना को लाख की टर्नरी का उपयोग करके और बहुआयामी तकनीकों का प्रयोग करके प्रभावशाली बनाया जाता है। जयपुर में पुराने कपड़े को नया रंग करके और अप्रयोज्य सामग्री की भराई से खिलौने बनाए जाते हैं। जब प्रसन्नतादायक रंगीन कागज और पन्नी लगा कर सजाया जाता है तो ये विशेषकर उनके अभिव्यंजक चहेरे सहित अति सजीव प्रतीत होते हैं। चिथड़े की गुडिया विशेषकर फैंके गए कपड़े के टुकड़ों से बनाई जाती है। इनको कडें परिश्रम से एकत्रित किया जाता है और रंगा योजनाओं के प्राकर पर कार्य करने के लिए विभिन्न रंगो से रंगा जाता है। नेत्र और मुख् को काली रेखा से दर्शाया जाता है। रानी गुडिया के मामलें में कपडॊ और शरीर को पूरी तरह सजाया जाता है। काष्ठ नक्काशी कार्य की तकनीकें :- प्रत्येक काष्ठ टुकड़े को जिसे वस्तु बनाने के लिये काटा जाता है, इसमें पूरी नमी को निकालने के लिये धीमी आंच पर गर्म किया जाता है। प्रत्येक पृथक्क अंग की अलग नक्काशी की जाती है और इमली के बीजों की चिपकाने वाळी गोंद से शरीर के साथ जोड़ा जाता है, और बाद में चूने के सरेस की कोटींग में से गुजारा जाता है। रंगो से रंगाई बकरी के बालों से निर्मित ब्रुश द्वारा अति सूक्ष्मता के साथ किया जाता है। पानी और तैलीय दोनो रंगो का प्रयोग किया जाता है। लाख का कार्य हाथ या यंत्र संचालित खराद पर किया जाता है। पतली और नाजुक वस्तुओं को मोड़ने के लिए, हाथ की खराद को सही माना जाता है। लाख टर्नरी पद्धति में,लाख को शुष्क अवस्था में लगाया जाता है अर्थात लाखभराई के लिए लिए लाख की छड़ को काष्ठ बर्तन के ऊपर दबाया जाता है। जब पश्चवर्ती घूमता रहता है, घर्षण से उत्पन्न उष्मा लाख को नरम बना देती है, और रंग छड़ बनाती है। लाख के खिलौने इस प्रकार बनाए जाते हैं। विशिष्ट दक्षता सहित शिल्पकार छड़ को प्रयोग में लाता है जहाँ अनेक रंग प्रयोग होते हैं। कुछ लाख कार्य की गई वस्तुओं को ब्रुश की सहायता से रंगाई की जाती है। कैसे पहुंचे:- श्योपुर नियमित बस सेवा द्वारा ग्वालियर, मुरैना तथा कोटा से जुड़ा हुआ है. श्योपुर ग्वालियर से 210 कि.मी. तथा मुरैना से 230 कि.मी. दूरी पर है. पूर्व रियासत राज्य ग्वालियर की अन्य छोटी रेलवे के(अब मध्यप्रदेश में केंद्रीय रेलवे का भाग) समान ही यह 610 मि.मी. गेज लाइन वास्तव में महाराजा ग्वालियर द्वारा प्रायोजित की गई थी जो श्योपुर में 1909 में पहुंची थी. श्योपुर का निकटतम विमानपत्तन ग्वालियर है. यह विमानपत्तन दिल्ली, मुम्बई, इन्दौर तथा मुम्बई से भली भांति जुड़ा हुआ है.