इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|
दीवानगंज समूह के बारे में:-
दीवानगंज समूह मध्य प्रदेश राज्य में रायसेन जिला के अर्न्तगत आता है.
दीवानगंज समूह 200 से अधिक कलाकारों तथा 12 एसएचजी आकार सहित सशक्त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्त कर रहा है.
घास, पत्ता, सरकंडे, तथा रेशा:-
किसी अन्य प्रदेश की भांति मध्यप्रदेश भी घास पर्ण की विभिन्न वस्तुएं उत्पादित करता है. यह कला प्रकृति से प्राप्त की गई है और पूर्णतया रसायनों से मुक्त है और पर्यावरण अनुकूल है बांस का अत्यधिक तनन बल एवं किसी भी आकृति में सुगमता से ढलने के गुणों नें इसे वास्तुकार प्रयोगों के लिए अति प्रसिद्ध बना दिया. ये कलाकार अनेक घरेलु उपयोग की वस्तुओं जैसे टोकरियां, चावल तथा सब्जियों की चलनी और झाड़ूओं को आकार प्रदान करते हैं. विन्यास की गई वस्तुएं जैसे फर्नीचर, रैक भी प्रचलन में हैं. बांस में एक बड़ी विशिष्टता होती है इसे अत्यधिक रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती वर्ष में एक बार काष्ठ पॉलिश इसकी लंबी आयु के लिए पर्याप्त होती है.
खजूर के कोमल पत्तों जिनकी शिराएं निकाल ली जाती हैं और तब धूप में सुखाया जाता है, से निर्मित वस्तुओं में थैले, भोजन पात्र और हाथ में रखे जाने वाले सजावटी पंखे जिनमें 37 से 56 के मध्य तिल्लीयां होती हैं, सम्मिलित हैं। तिल्लीयों को उनके मध्य में छेद के माध्यम से ताँबे की तार द्वारा एकसाथ बाँधा जाता है और पंखे के रूप में फैलाने के लिए एकसाथ सिल दिया जाता है। तिल्लीयों पर पुष्प चित्रकारी कर पंखों को आकर्षक बनाया जाता है। ताड़ पत्तों और तने की बुनाई दक्षिणी केरल में एक फलता-फूलता उद्योग है इन दिनों थैले, टोप,और सूटकेश भारतीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए बनाए जा रहे हैं। सरकंडा एक खोखले तने सहित एक कठोर तने की घास होता है जो बाँस के समान दिखाई देता है। यह एक मजबूत सामग्री है और सरकंडे की चटाई को भवनों की दीवारों और छतों को बनाने में प्रयोग किया जाता है। सरकंडे को चटाई के रूप में टुईल बनने के लिए पहले चीरा और छीला जाता है। इन्हें एक सिरे से तैयार करना आरंभ किया जाता है और चुनटें या बुनाई तिरछे रूप में की जाती है। लंबी पट्टियों को मध्य से मोड़ दिया जाता है और दूसरी पट्टी को टेढ़ा प्रविष्ट किया जाता है, जिसे बदले में मोड़ दिया जाता है, और अगली पट्टी दोबारा टेढ़ी प्रविष्ट की जाती है और यह जारी रहता है। टेढ़ी पट्टियों की चुनट चटाई का किनारा निर्मित करती है। सरकंडों को अत्यधिक मजबूत टोकरियां बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
कच्ची सामग्री:-
मध्य प्रदेश के गांव खजूर ,नारीयेल,ताड,पल्मयरा के पेड से भरे हुए है।बास्केट और संबंधित उत्पादने बनाने के लिए खजूर कच्ची सामग्री का अहम संशाधन है।अन्य कच्ची सामग्री जैसे की बांस,बेंत, घास,रेसे और नरकट का भी बास्केट,छत,रस्सा,चट्टाइ और काफी अन्य चीजे बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
प्रक्रिया:-
पटसन रेशा पटसन पौधे के तना और छाल (बाहरी चमडी) से मिलता है।रेसो को पहले सडन फेला के अलग किया जाता है।सडन कि प्रक्रिया में सामिल है पटसन के तनो की एक भारी बनाना और उनको कम,बह्ते पानी मे डूबोना।दो तरह की सडन की जाती है:तना और छाल ।सडन की प्रक्रिया के बाद पट्टी बनाना शुरू होता है।औरते और बच्चे सामान्य रुप से यह काम करते है।पट्टीया बनाने की प्रक्रिया में रेशेदार तत्व को खुरचा जाता है,बाद में कामदार जुट जाते है और पटसन तने से रेसो को निकालते है।
पटसन बेगो का फेशन बेग और प्रमोशनल बेग बनाने के लिए इस्तेमाल होता है।पटसन का इको-फ्रेन्डली लक्सण इसको सामूहिक भेट देने की खातिर श्रेष्ठ बनाता है।
पटसन की फर्श आवरण के लिए बुनी हुइ और गुच्छेदार और ढेर कि हुइ कार्पेट का इस्तेमाल किया जाता है।पटसन चटाइया और 5/6 चौडाइ की और अवरित लंबाइ की चटाइया भारत के दक्सिणी भाग में बडी आसानी से बुनी जाती है,मजबुत और फेन्सी रंगो मे और अलग अलग बुनाइयोमे जैसे की बौकले,पानामा,हेरींगबोन इत्यादि।पटसन चटाइ और गलीचा पावर लूम और हाथ के लूम दोनो से,बडी मात्रा मे केराला,भारत मे से बनाया जाता है।पारंपारीक शेतरंजी चटाइ घर के सजावट के लिए बहुत हि लोकप्रिय हो रहि है।पटसन बिना बुनाइ के और घटको का अन्डरले , लीनोलीयम,सबस्ट्रेट और सभी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।इस तरह पटसन सबसे ज्यादा वातावरणीय दोस्ती वाला रेसा है जो शुरु होता है बीज से और खत्म होता है रेसे मे,क्योंकि खतम हुए रेशा को एक से ज्यादा बार रीसाइक्ल किया जा सकता है।
तकनीकियाँ:-
व्यवाहारीक कोर्ष है आधुनिक तकनिक का परिचय कराना और कौशल्य को बढाना और कामदार को उसकी उत्पादकता और उसकी आमदनी बढाने के योग्य इस तरह बनाना की वो अपने जीवन की बुनियादी जरुरतो को पूरा कर शके और बहुत हि कम समय में गरीबाइ के चुंगल मे से बाहर आ शके।
कैसे पहुचे :-
दिल्ली-मुम्बई-चैन्ने ब्राडगेज रेलवे लाइन जिला में से गुजरती है. जिला में कुछ प्रमुख रेलवे स्टेशन सुल्तानपुर, दीवानगंज, सॉंची, मण्डीदीप, अब्दुल्लागंज तथा बारखेड़ा हैं. रायसेन कस्बा राज्य राजमार्ग 18 पर स्थित है तथा राज्य के सभी भाग नियमित बस सेवाओं द्वारा जुड़े हुए हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग 12 जिला के महत्त्वपूर्ण कस्बों जैसे मण्डीदीप, अब्दुल्लागंज, बाड़ी, बरेली, तथा उदयपुरा से गुजरता है.