इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगे क्षेत्र) को समूह (क्लस्टर) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें सामान्य अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को शिल्पी समूह कहते हैं| किसी समूह विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढ़ियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी समूह) सदियों पुराने हैं| काठुमास समूह के बारे में:- काठुमास समूह राजस्थान राज्य के अलवर जिला के अन्तर्गत आता है। काठुमास समूह 300 से अधिक शिल्पकारों और 20 एसएचजी सहित सक्षम कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है। यह संघटन दिन-प्रतिदिन पहचान प्राप्त कर रहा है। पत्थर नक्काशीकार्य :- उत्तम पत्थर नक्काशी या पत्थर में भंगुर जाली कार्य दस क्षेत्र की विशेषता है. जयपुर, थानागाजी, किशोरी, मकराना, जोधपुर, जैसलमेर और डुंगरपुर मुख्य केन्द्र हैं. पत्थर के उत्तम अलंकृत घरेलू बर्तन इस कला के अत्यधिक सर्तकता एवं इसके सुरूचिपूर्ण ढंग से सुंदरतापूर्ण बनाए जाते हैं. नक्काशी का एक विशिष्ट लक्षण सूर्य देव की नक्काशी है, जो राजस्थान के अन्य भागों में नहीं पाई जाती. यहां पाए जाने वाले विशिष्ट पत्थर बलुआ पत्थर, पीला चूना पत्थर, रंगीन एवं सफेद संगमरमर हैं. नक्काशियों सहित यवनिका(जाली) तथा पीतल के चित्रों से अलंकृत वैभवपूर्ण नक्काशी किए दरवाजों का आनंद लिया जा सकता है. हरे चकत्तेदार तॉंबा वर्ण के पाए जाने वाले पत्थर प्रतिमाएं बनाने में प्रयुक्त होते हैं. डुंगरपुर में हल्का छायादार पत्थर होता है जो तेल लगाने पर काले रंग में परिवर्तित हो जाता है तथा मूर्ति बनाने में प्रयुक्त होता है.
मार्बल बक्से, दीवाल की तख्तियां, मेज शीर्ष, कोस्टर्स और अर्द्धमूल्यवान नगों से जड़ाई की गई राखदानियां और मुगल स्मारकों से प्राप्त पिएट्रा ड्युरा विन्यास में प्रसन्नतादायक मोतियों की जननी राजस्थान के पत्थर शिल्प मे सम्मिलित हैं। गरूड़ पत्थर नक्काशीकार्य, पेपरवेट, और रुबी घन जैसे मोमबत्तीधारक, जो विभिन्न चार आकारों में होती है, इन्हें राजस्थान के शिल्पकारों की जटिल शिल्पकारी समझा जाता है. विभिन्न वस्तुएं तैयार करने जो स्थानीय व्यक्तियों और पर्यटकों की रुचि को आकर्षित कर सकें शिल्पकार ऐसी विशिष्ट वस्तुएं तैयार करते हैं जिन्हें सजावटी उद्देश्य पूरा करने के लिए आधुनिक घरों में रखा जाता है। कच्ची सामग्री:- राजस्थान में पत्थरशिल्प की मौलिक सामग्री है मार्बल, गोरारा सेलखड़ी, और कभी कभार कुडपाह। आगरा के शिल्पकार कई बार स्वदेशी निर्मित मशीनों को पत्थर की कटाई, पिसाई, फाड़ने और पॉलिश करने के लिए प्रयोग करते हैं। कुछ स्थानों पर अभी भी शिल्पकार छैनी और हथोड़े का प्रयोग उत्कीर्ण नमूने और विन्यास तैयार करने के लिए प्रयोग करते हैं और इसके बाद रगड़ाई और पॉलिश होती है । प्रक्रिया:- शिल्पकार सज्जर पत्थर पर कार्य करते समय कार्य करने के लिए चुने गए पत्थर में समाहित प्राकृतिक विन्यास का अध्ययन करता है।उसके बाद बहुत ही सावधानी से छैनी और हथौड़ी से आकार दिया जाता है। उष्मा उत्पन्न होने से बचाव के लिए बार-बार पानी का छिड़काव किया जाता है। पत्थर को रेगमार या रेती से घीसाई कर कोमल बनाया जाता है। तैयार की जाने वाली आकृति के माप को पत्थर की पटिया पर अंकित किया जाता है। प्टिया में अतिरिक्त किनारों को हथौड़े से ठोक कर हटाया जाता है। पत्थर के बड़े टुकडॊं को उर्ध्वाधर छॊटी पटिया में काटा जाता है, और उसके ऊपर कच्ची आकृति बनाई जाती है। आरी की सहायता से वस्तु को पटिया में से बाहर निकाला जाता है। अब इस पटिया को हथोड़ी और छेनी के साथ अपेक्षित रुप में परिवर्तित किया जाता है। सूक्ष्म नक्काशीकार्य नुकीली छैनी से किया जाता है। हथौड़ी और छैनी आगामी कोमलता बनाते हैं। नक्काशीकार्य करने से पहले पत्थर को पूरी रात उबलते पानी में रखा जाता है और रसायनिक रूप से उपचारित किया जाता है। यह पत्थर की सतह को कोमल और सफेद बनाती है। रेती या करण्ड टुकडों से आखरी चमक के लिए पॉलिश की जाती है। अनेक नक्काशी की गई वस्तुओं को रंग किया जाता है। अन्य को पारदर्शी शीशों, पीतल की फ्रेम में स्थापित किया जाता है। किसी आकृति की नक्काशी करने के लिए पत्थर नक्काशीकार मूर्ति की कच्ची रेखाकृति पत्थर की पटिया पर तैयार करता है। शिल्पकार, उनके कार्य के दौरान पत्थर पर पानी छिड़काव करते हैं क्योंकि लगातार छैनीकार्य से अवांछित सामग्री को दूर करने के कारण उत्पन्न घर्षण के कारण उपकरण गर्म हो जाते है। रेगामार घिसाने मुल्तानी मिट्टी या मिट्टी, तेल और कपड़े से पॉलिश करने के अनेक तरीकों से अंतिम चमक प्रदान की जाती है । कठोर या नरम पत्थर पर रूपरेखा तैयार की जाती है जिसे पहले से उपयुक्त आकार में काटा गया है। एक बार आकृति को दर्शाते हुए रेखा उत्कीर्ण करने पर, अवांछित भागों को हटा कर अंतिम आकृति तैयार की जाती है। जबकि कठोर पत्थरों के लिए अतिरिक्त भाग को छैनी के द्वारा हटाकर यह कार्य किया जाता है। इसे नरम पत्थरों के साथ तीखे समतल धार के लोहे के उपकरण से खुरच कर दूर किया जाता है। तकनीकें:- मुख्य तकनीकें नीचे दी गई हैं:- 1. कटाई 2. पिसाई 3. रगड़ना 4. पॉलिश कैसे पहुंचे:- अलवर से निकटवर्ती विमानपत्तन दिल्ली 163 कि.मी. दूरी पर है. अलवर रेल द्वारा दिल्ली, जोधपुर, मुम्बई एवं भारत के अन्य पर्यटन शहरों से भली-भांति जुड़ा हुआ है. अलवर राजस्थान के अधिकतर पर्यटन स्थलों एवं शहरों जैसे सरिस्का, भरतपुर तथा जयपुर से जुड़ा हुआ है. दिल्ली अलवर से 163 कि.मी. दूरी पर है.