इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगे क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें सामान्य अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं| खीरीया खोजवा समूह के बारे में:- खीरीया खोजवा समूह उत्तरप्रदेश राज्य के वाराणसी जिला के अन्तर्गत आता है। खीरीया खोजवा समूह 150 से अधिक शिल्पकारों और 10 एसएचजी सहित सक्षम कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है। यह संघटन दिन-प्रतिदिन पहचान प्राप्त कर रहा है। पत्थर नक्काशीकार्य :- उत्तरप्रदेश के पत्थर शिल्प नें इसकी जटिल वास्तुकलात्मक श्रेष्ठकृतियां तैयार करने में रचनात्मक श्रेष्ठता प्रदर्शित की है। इन्हें दक्षतापूर्ण छैनी द्वारा तैयार और जड़ाई कार्य से सज्जित किया जाता है। बलुआ पत्थर पर पत्थर नक्काशी में शाही सम्मोहन की सांस्कृतिक विरासत और विविधता है जो कलाकारों द्वारा खोजी गई है। ये श्रेष्ठ पत्थर शिल्प किलों तथा महलों पर जटिल नक्काशी के रूप में दृष्टिगोचर हैं। श्रेष्ठ उत्कीर्ण सहित धार्मिक देवी-देवताओं की मूर्तियां, जड़ाई कार्य की तैयार की गई प्रतिभाशाली वस्तुएं, सस्ते या अर्द्धमूल्यवान सीपों की जड़ाई सहित पत्थर नक्काशी कुछ सुप्रसिद्ध पत्थर शिल्प हैं जिनकी समस्त देशों में प्रशंसा होती है। वाराणसी वह स्थल है जहां पत्थर शिल्प के शानदार नमूने दिखाई देते हैं। वाराणसी के सोनिया औए कालीमोहाल क्षेत्र और आगरा मे गोकुलपुरा वह स्थल हैं जहाँ पत्थर शिल्प कारीगरी के श्रेष्ठ नमूने पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों के अधिकतर व्यक्ति, मुख्यत: इन क्षेत्रों के शिल्पकार अपना जीवन-यापन पत्थर की उत्कृष्ट वस्तुएं तैयार कर अर्जित करते हैं। मार्बल बक्से, दीवाल की तख्तियां, मेज शीर्ष, कोस्टर्स और अर्द्धमूल्यवान नगों से जड़ाई की गई राखदानियां और मुगल स्मारकों से प्राप्त पिएट्रा ड्युरा विन्यास में प्रसन्नतादायक मोतियों की जननी उत्तरप्रदेश के पत्थर शिल्प मे सम्मिलित हैं। गरूड़ पत्थर नक्काशीकार्य, पेपरवेट, और रुबी घन जैसे मोमबत्तीधारक, जो विभिन्न चार आकारों में होती है, इन्हें उत्तरप्रदेश के शिल्पकारों की जटिल शिल्पकारी समझा जाता है. विभिन्न वस्तुएं तैयार करने जो स्थानीय व्यक्तियों और पर्यटकों की रुचि को आकर्षित कर सकें शिल्पकार ऐसी विशिष्ट वस्तुएं तैयार करते हैं जिन्हें सजावटी उद्देश्य पूरा करने के लिए आधुनिक घरों में रखा जाता है। कच्ची सामग्री:- उत्तरप्रदेश में पत्थरशिल्प की मौलिक सामग्री है मार्बल, गोरारा सेलखड़ी, और कभी कभार कुडपाह। आगरा के शिल्पकार कई बार स्वदेशी निर्मित मशीनों को पत्थर की कटाई, पिसाई, फाड़ने और पॉलिश करने के लिए प्रयोग करते हैं। कुछ स्थानों पर अभी भी शिल्पकार छैनी और हथोड़े का प्रयोग उत्कीर्ण नमूने और विन्यास तैयार करने के लिए प्रयोग करते हैं और इसके बाद रगड़ाई और पॉलिश होती है । प्रक्रिया:- शिल्पकार सज्जर पत्थर पर कार्य करते समय कार्य करने के लिए चुने गए पत्थर में समाहित प्राकृतिक विन्यास का अध्ययन करता है।उसके बाद बहुत ही सावधानी से छैनी और हथौड़ी से आकार दिया जाता है। उष्मा उत्पन्न होने से बचाव के लिए बार-बार पानी का छिड़काव किया जाता है। पत्थर को रेगमार या रेती से घीसाई कर कोमल बनाया जाता है। तैयार की जाने वाली आकृति के माप को पत्थर की पटिया पर अंकित किया जाता है। प्टिया में अतिरिक्त किनारों को हथौड़े से ठोक कर हटाया जाता है। पत्थर के बड़े टुकडॊं को उर्ध्वाधर छॊटी पटिया में काटा जाता है, और उसके ऊपर कच्ची आकृति बनाई जाती है। आरी की सहायता से वस्तु को पटिया में से बाहर निकाला जाता है। अब इस पटिया को हथोड़ी और छेनी के साथ अपेक्षित रुप में परिवर्तित किया जाता है। सूक्ष्म नक्काशीकार्य नुकीली छैनी से किया जाता है। हथौड़ी और छैनी आगामी कोमलता बनाते हैं। नक्काशीकार्य करने से पहले पत्थर को पूरी रात उबलते पानी में रखा जाता है और रसायनिक रूप से उपचारित किया जाता है। यह पत्थर की सतह को कोमल और सफेद बनाती है। रेती या करण्ड टुकडों से आखरी चमक के लिए पॉलिश की जाती है। अनेक नक्काशी की गई वस्तुओं को रंग किया जाता है। अन्य को पारदर्शी शीशों, पीतल की फ्रेम में स्थापित किया जाता है। किसी आकृति की नक्काशी करने के लिए पत्थर नक्काशीकार मूर्ति की कच्ची रेखाकृति पत्थर की पटिया पर तैयार करता है। शिल्पकार, उनके कार्य के दौरान पत्थर पर पानी छिड़काव करते हैं क्योंकि लगातार छैनीकार्य से अवांछित सामग्री को दूर करने के कारण उत्पन्न घर्षण के कारण उपकरण गर्म हो जाते है। रेगामार घिसाने मुल्तानी मिट्टी या मिट्टी, तेल और कपड़े से पॉलिश करने के अनेक तरीकों से अंतिम चमक प्रदान की जाती है । कठोर या नरम पत्थर पर रूपरेखा तैयार की जाती है जिसे पहले से उपयुक्त आकार में काटा गया है। एक बार आकृति को दर्शाते हुए रेखा उत्कीर्ण करने पर, अवांछित भागों को हटा कर अंतिम आकृति तैयार की जाती है। जबकि कठोर पत्थरों के लिए अतिरिक्त भाग को छैनी के द्वारा हटाकर यह कार्य किया जाता है। इसे नरम पत्थरों के साथ तीखे समतल धार के लोहे के उपकरण से खुरच कर दूर किया जाता है। तकनीकें:- मुख्य तकनीकें नीचे दी गई हैं:- 1. कटाई 2. पिसाई 3. रगड़ना 4. पॉलिश कैसे पहुंचे:- निकटतम विमान पत्तन बाबतपुर, वाराणसी से 22 किमी और सारनाथ से 30 किमी दूरी पर है। वाराणसी के लिए दिल्ली, आगरा, खजूराहो, कोलकाता, मुंबई, लखनऊ और भुवनेश्र्वर विमान पत्तनों से सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं। वाराणसी और मुगलसराय (वाराणसी के मुख्य रेलवे स्टेशनों में से एक) भारत के सभी महत्वपूर्ण शहरों के साथ ट्रेन सम्पर्क सहित, प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। कोलकाता से दिल्ली तक रा.रा. 2, कन्याकुमारी तक एनएचजैड और गोरखपुर तक रा.रा. 29 पर, वाराणसी देश के शेष हिस्सों से अच्छी तरह परिवहन योग्य सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है। कुछ प्रमुख सड़क दूरियां हैं : आगरा-565 किमी, इलाहाबाद-128 किमी, भोपाल-791 किमी, बोधगया -240 किमी, कानपुर-330 किमी, खजूराहो-405 किमी, लखनऊ-286, पटना-246 किमी, सारनाथ-10 किमी