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इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

नागौर समूह के बारे में:-

नागौर समूह राजस्‍थान राज्‍य में नागौर जिला के अर्न्‍तगत आता है.

नागौर समूह 188 से अधिक कलाकारों तथा 14 एसएचजी आकार सहित सशक्‍त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्‍त कर रहा है.

चर्म शिल्‍प (जूते):-

मोजडी (या जूतियां या पगरखिया) राजस्‍थान में स्थानीय शोधन किए गए जूते का नाम है. ये इनके शिल्‍पकार्य की गुणवत्ता, विन्‍यास की विविधता एवं समृद्धता के लिए अति प्रसिद्ध हैं. ये पूर्णत: हस्‍तनिर्मित होती हैं और अंगुलियों से नापा जाता है.

अनुपालन की जाने वाली प्रक्रिया में तली की विभिन्‍न परतों को गृह-निर्मित गोंद से चिपकाया जाता है. एक बार सूखने के पश्‍चात् तली को सूती या चर्म धागे से सिलाई की जाती है. ऊपरी भाग की तब महिलाओं द्वारा कशीदाकारी की जाती है जो इसमे बहुत दक्ष होती हैं. चमडे को नरम करने के लिए पानी में डुबोने के पश्‍चात् ऊपरी भाग के अंदर के किनारों पर साधारण या रंगीन पाइपों को टाँक दिया जाता है. सिलाई तथा चिपकाव को सुदृढ करने के लिए प्रत्‍येक चरण पर चमडे की हथौडों से कुटाई की जाती है.

जब ऊपरी भाग को तली के साथ लगा दिया जाता है तो इसे अंतिम रूप प्रदान करने के लिए लकडी के गुटके पर रखा जाता है; कभीकभार ऊपरी भाग पर लाल, हरे, तथा गहरे गुलाबी रंगों का स्‍प्रे किया जाता है. साधारण उपकरण जैसे सुई, चाकू, एक लकडी का गुटका और एक हथौडी प्रयोग की जाती है. तले के सामने के किनारे पर ठोकर को छल्ला बनाते हुए चमडे की एक पतली पट्टी लगाई जाती है जो ठोकर की सुरक्षा करती है. पीछे के भाग पर, चमडे की एक पट्टी एक इंच बाहर निकली होती है जो पहनने वाले की जूती खींचने में सक्षम बनाती है. तले पर सिलाई सदैव सूती धागे की कई लडियों में की जाती है. साधारण तले पर सिलाई किया गया साधारण ऊपरी भाग जूती का साधारणतम रूप होता है. दाण्‍ं एवं बाएं पैर में कोई भिन्‍नता नहीं होती और जूती पहनने वाले के पैर के अनुसार आकार ग्रहण कर लेती है.

चर्म शिल्‍प की कच्‍ची सामग्री:-

 राजस्‍थान में चर्म शिल्‍प तैयार करने में प्रयुक्‍त मुख्‍य कच्‍ची सामग्री भेड एवं बकरियों की खाल होती है. चर्म शिल्‍प विशेषकर चमडे की कठपुतलियां तैयार करने में कुछ प्रक्रियाओं का अनुपालन करना पडता है जैसे खाल को धोना, इसे अत्‍यधिक दक्षता एवं संपूर्णता से साफ तथा सजावट करना. एक बार कठपुतलियां तैयार हो जाने पर रंग करना तथा किनारों की बाह्यरेखाएं निर्मित की जाती हैं. दन चर्म कठपुतलियों को तैयार करने के अतिरिक्‍त राजस्‍थान के शिल्‍पकार गृह सज्‍जा में प्रयुक्‍त चमडे की वस्‍तुएं जैसे प्रकाश छादक, दीवार लटकन आदि तैयार करते हैं.

चर्म शिल्‍प प्रक्रिया:-

चमडे को थोक बाजार से खरीदा जाता है तथा बडे ड्रमों में दो दिन तक डुबोया जाता है. इसे तब अतिरिक्‍त चर्म अवयव हटाने के लिए पूर्णत: साफ किया जाता है. जब यह पूर्णतया गीला होता है तो फर्श पर तान दिया जाता है और सूखने के छोड दिया जाता है. इस प्रक्रिया में कौषल की आवश्‍यकता होती है क्‍योंकि सिलवटें हटाने के लिए चमडे को एकसमान खींचे जाने की आवश्‍यकता होती है. अच्‍छी तरह किया गया खींचाव चमडे के पृष्‍ठ क्षेत्र में 5-10% की वृद्धि कर सकता है. इस चरण में गीले चमडे के अंदर पानी गोंद की भांति कार्य करता है और इसे दृढतापूर्वक फर्श पर जकडे रखता है. इसके पश्‍चात् इसे चिह्नित कर कैंची और गत्ते के फरमों के साथ आकार में काटा जाता है. उत्‍कीर्ण किए जाने वाले टुकडों को तब स्‍पंज की सहायता से नम किया जाता है और एक घूर्णन सूई के साथ घुमाया जाता है. पुराने छापेखानों में प्रयुक्‍त अम्‍ललेखन प्रक्रिया के प्रयोग द्वारा वांछित आकार का एक खण्‍ड बनाया जाता है. ठप्‍पे को गोल दबाव मशीन में रखा जाता है और चमडे को ठप्‍पे और कठोर रबड की परत के मध्‍य रखकर कठोरता से संपीडित किया जाता है. चमडे को दोबारा सॉंचों के अनुरूप काटा जाता है तथा बक्‍स या थैले बनाने के लिए संयोजित किया जाता है. बक्‍सों को कडेपन के लिए गत्ते प्रयुक्‍त करते हुए बनाया जाता है और प्रत्‍येक वस्‍तु को रबड आधारित गोंद का प्रयेग कर चिपकाया जाता है. गत्ते को ठप्‍पे का प्रयोग कर काटा जाता है, क्‍योंकि कटाई अत्‍यंत अत्‍यंत परिशुद्ध करनी होती है. एक छोटी सी त्रुटि भी थैले के अंतिम आकार को विकृत कर सकती है.

चर्म शिल्‍प तकनीकें :-


एक पूर्ण उत्‍पाद बनाने के लिए अन्‍य अनेक तकनीकें सम्मिलित हैं, जिनमें सर्वाधिक महत्त्‍वपूर्ण तराशना/घिसाना (चमडे के किनारों की मोटाई में वृद्धि किए बगैर छुपाना यद्यपि फैशन पंडितों के इस पर विरोधी विचार हैं), चुन्नट (एक समान तह सुनिश्चित करने के लिए), कुटाई (मुगरे के साथ चिपकाव की प्रभावकारिता में वृद्धि करने के लिए) तथा पॉलिश(चमडे को चमकदार सतह प्रदान करने के लिए इसे शीशे या पत्‍थर के कोमल के टुकडे से घिसाना, इसमें सम्मिलित उष्‍मा एवं दाब रन्‍ध्रों को बंद करते हैं और चमडे का उच्‍च एवं एकसमान घनत्त्‍व प्रदान करते हैं) करना हैं. टुकडों को एक सिलाई मशीन का प्रयोग कर थैले निर्मित किए जाते हैं. चमडे की सिलाई वस्‍त्र सिलाई की भांति नहीं होकर एक भारी मशीन द्वारा की जाती है और टुकडों को नियत स्‍थान पर रखे रहने के लिए सिलाई पूर्व गोंद की निश्चित मात्रा की आवश्‍यकता होती है.

कैसे पहुचे :-

निकटतम विमानपत्तन जोधपुर(137कि.मी.) है. नागौर कस्‍बा ब्रॉडगेज रेलवेलाइन द्वारा जोधपुर, जयपुर, बीकानेर तथा दिल्‍ली से जुडा हुआ है. जिले के अंदर रेलवे लाइन की कुल लंबाई 384 कि.मी. है. जिला में सभी महत्त्वपूर्ण स्‍थान बस सेवाओं द्वारा जुडे हुए हैं. जिला में विभिन्‍न श्रेणी के सडक मार्गों की कुल लंबाई मार्च 2000 तक लगभग 5,038 कि.मी. थी.

 








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